
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकारी दफ्तरों में लंबी और जटिल प्रक्रियाओं को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अतिरिक्त और गैर-जरूरी दस्तावेज़ीकरण करना नागरिकों के लिए परेशानियों का कारण बनता है और इसे गैर-कानूनी माना जाएगा।
आसान प्रक्रियाओं को अच्छा शासन माना गया
जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की बेंच ने स्पष्ट किया कि अधिकारियों को फालतू और बेकार की जरूरतें थोपने से बचना चाहिए, क्योंकि ये किसी भी प्रक्रिया को जटिल बना देती हैं, समय और मन की शांति दोनों का नुकसान करती हैं।
झारखंड सरकार का मेमो रद्द
कोर्ट ने झारखंड सरकार के 2009 में जारी मेमो को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। इस मेमो में इंडियन स्टाम्प एक्ट की धारा 9A के तहत दस्तावेज़ रजिस्ट्रेशन के लिए असिस्टेंट रजिस्ट्रार की अतिरिक्त सिफारिश को अनिवार्य किया गया था। कोर्ट ने कहा कि रजिस्ट्रार का साइन और सील किया गया रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट ही पक्का सबूत है और किसी अतिरिक्त सिफारिश की जरूरत नहीं है।
गैर-जरूरी बोझ से बचना जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे काम जो कोई वैध मूल्य नहीं जोड़ते और केवल फालतू हैं, उन्हें गैर-कानूनी मानकर खारिज किया जा सकता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सरल, साफ और समझने में आसान प्रक्रियाएं ही अच्छे शासन की पहचान हैं।
निष्कर्ष
अदालत का यह फैसला आम आदमी के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए प्रशासनिक सुधारों और सरकारी प्रक्रियाओं में सादगी लाने की दिशा में एक अहम कदम है।