
सुप्रीम कोर्ट ने अरुंधति रॉय की किताब के कवर पर बीड़ी पीती हुई उनकी तस्वीर को COTPA अधिनियम, 2003 का उल्लंघन नहीं माना। पीठ ने स्पष्ट किया कि यह तस्वीर तंबाकू उत्पादों को बढ़ावा नहीं देती और इस पर वैधानिक चेतावनी की आवश्यकता नहीं है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अरुंधति रॉय एक प्रतिष्ठित लेखिका हैं और उनका नाम ही प्रचार के लिए पर्याप्त है। कवर पर उनकी तस्वीर शहर में लगे होर्डिंग या विज्ञापन जैसा प्रभाव नहीं डालती, इसलिए वैधानिक चेतावनी की जरूरत नहीं। पीठ ने कहा, “पाठक किताब को कवर की तस्वीर देखकर नहीं, बल्कि लेखक को देखकर खरीदते हैं।”
याचिकाकर्ता का तर्क और कोर्ट की प्रतिक्रिया
याचिकाकर्ता राजासिम्हन की ओर से वरिष्ठ वकील एस. गोपाकुमारन ने तर्क दिया कि सार्वजनिक हस्ती की तंबाकू पीते हुए तस्वीर युवाओं को प्रोत्साहित कर सकती है। इस पर कोर्ट ने कहा कि किताब के पिछले कवर पर स्पष्ट डिस्क्लेमर मौजूद है, जो बताता है कि तस्वीर धूम्रपान को बढ़ावा नहीं देती।
पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए केरल हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि साहित्यिक प्रकाशनों में व्यक्तिगत चित्रण को विज्ञापन के रूप में नहीं माना जाएगा, जब तक वह तंबाकू या हानिकारक उत्पादों को बढ़ावा नहीं देता।