Friday, December 5

Projector Vs TV: क्यों प्रोजेक्टर टीवी के सामने फेल साबित होता है

नई दिल्ली/एनबीटी। आजकल घरों में बड़ी स्क्रीन पर मूवी, गेमिंग या क्रिकेट मैच देखने का शौक बढ़ गया है। ऐसे में अक्सर लोग कंफ्यूज हो जाते हैं कि प्रोजेक्टर खरीदें या टीवी। हालांकि प्रोजेक्टर का डिस्प्ले बड़ा होता है और मूवी थिएटर जैसा अनुभव देता है, लेकिन इसमें एक बड़ी कमी है, जो इसे टीवी के मुकाबले पीछे कर देती है।

प्रोजेक्टर का सबसे बड़ा दोष: लेंस ब्लर होना

प्रोजेक्टर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उसका लेंस होता है, जो स्क्रीन या दीवार पर इमेज बनाता है। समय के साथ लेंस पर धूल, नमी और गंदगी जम जाती है। इसे बाहर से साफ किया जा सकता है, लेकिन लेंस के अंदर की गंदगी और फंगस (फफूंद) लग जाने पर सफेद या काले धब्बे दिखने लगते हैं।

कई बार कोशिश करने के बावजूद लेंस पूरी तरह साफ नहीं होता, जिससे इमेज धुंधली या धब्बेदार नजर आती है। चाहे कितना भी महंगा प्रोजेक्टर हो, यह समस्या आमतौर पर 2-3 साल में दिखने लगती है। वहीं टीवी में पैनल सील होता है और इसमें धूल अंदर नहीं जाती, इसलिए सालों तक तस्वीर एकदम साफ रहती है।

प्रोजेक्टर इस्तेमाल में झंझट भरा

  • हर बार इस्तेमाल के बाद प्रोजेक्टर को ठंडा होने देना जरूरी है। जल्दी-जल्दी ऑन-ऑफ करने पर लैंप जल्दी खराब हो जाता है।
  • धूल से बचाने के लिए हर इस्तेमाल के बाद प्रोजेक्टर को कवर करना पड़ता है।
  • कमरे को पूरी तरह अंधेरा करना पड़ता है, अन्यथा तस्वीर फीकी पड़ जाती है।

टीवी के मुकाबले प्रोजेक्टर की अन्य कमियां

  • इमेज एंगल: प्रोजेक्टर की तस्वीर सही एंगल पर डालनी पड़ती है, थोड़ी भी टेढ़ी हुई तो साइज बिगड़ जाता है। टीवी में ऐसा नहीं है।
  • साउंड: प्रोजेक्टर के स्पीकर कमजोर होते हैं, जबकि टीवी में पहले से ही अच्छे स्पीकर होते हैं।
  • गर्मी और धूल: प्रोजेक्टर गर्मी छोड़ता है और हवा में धूल खींचता है, जिससे लेंस जल्दी गंदा होता है।

निष्कर्ष:
बड़ी स्क्रीन का आनंद प्रोजेक्टर देता है, लेकिन लेंस ब्लर, धूल, रोशनी की जरूरत और कमजोर साउंड जैसी समस्याओं के कारण टीवी आमतौर पर बेहतर विकल्प साबित होता है। यदि आप चाहते हैं कि सालों तक साफ और बेहतरीन इमेज मिले, तो टीवी खरीदना ज्यादा समझदारी भरा फैसला होगा।

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