Wednesday, November 5

माता-पिता से मिलते ही छलक पड़े सुनीता के आंसू, जबरन उठा ले गए थे नक्सली — 12 साल बाद मिली आज़ादी, अब लौट रही है सामान्य जीवन में

बालाघाट। कभी नक्सलियों की बंदूक थामने को मजबूर हुई सुनीता अब शांति और सुकून की राह पर लौट आई है। करीब 12 साल तक नक्सल संगठन में रहने के बाद सुनीता ने आत्मसमर्पण कर नई जिंदगी की शुरुआत की है। मंगलवार को जब 3 साल बाद उसने अपने माता-पिता से मुलाकात की, तो पूरे माहौल में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन आंखों से बहते आंसू उसकी पीड़ा और राहत दोनों की कहानी कह रहे थे।

सुनीता ने 1 नवंबर को बालाघाट पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। इसके बाद मंगलवार को पुलिस ने उसके माता-पिता को बीजापुर से बुलाकर मुलाकात करवाई। इस मौके पर सरपंच चन्नुलाल पुरियाम भी मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि सुनीता को नक्सलियों ने जबरदस्ती घर से उठा लिया था, और परिवार को धमकी दी थी कि विरोध किया तो बाकी बेटियों को भी उठा लिया जाएगा।

परिजनों ने सुनीता से मिलकर पुलिस और प्रशासन के प्रति आभार व्यक्त किया तथा उसका पुनर्वास बीजापुर में करने की मांग रखी। पिता दसरू ओयाम ने कहा कि बेटी की कभी पढ़ाई नहीं हुई और उसके दस्तावेज भी नहीं हैं। अब पुलिस उसकी पहचान से जुड़ी सभी औपचारिकताएं पूरी करवा रही है।

पुलिस के अनुसार, गांव के कुल चार लोग नक्सली संगठन में शामिल हुए थे, जिनमें से सुनीता सहित दो ने वापसी की है, जबकि दो अब भी जंगल में हैं। आत्मसमर्पण नीति के तहत सुनीता को ₹50,000 की प्रोत्साहन राशि दी गई है और भविष्य में सरकारी नौकरी व अन्य सुविधाओं का लाभ भी मिलेगा।

एसपी आदित्य मिश्रा ने कहा कि सुनीता की कहानी इस बात का प्रमाण है कि नक्सली विचारधारा अब खोखली साबित हो रही है। उन्होंने कहा, “अब सशस्त्र संघर्ष का कोई औचित्य नहीं है। जो भी नक्सली समाज की मुख्यधारा में लौटना चाहता है, उसका स्वागत है। सरकार की सरेंडर नीति उन्हें सुरक्षा, सम्मान और पुनर्वास की गारंटी देती है।”

सुनीता की आंखों से छलकते आंसू उस उम्मीद का प्रतीक हैं, जो जंगल के अंधेरों से निकलकर अब नई सुबह की रोशनी की ओर बढ़ रही है।

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