
देहरादून।
उत्तराखंड की बहुचर्चित ऑल वेदर रोड परियोजना जहां चारधाम यात्रा को सुगम बनाने का दावा करती है, वहीं इसके दुष्परिणाम अब पहाड़ों पर साफ नजर आने लगे हैं। ऋषिकेश–बदरीनाथ हाईवे पर स्थित तोताघाटी क्षेत्र में पहाड़ी के भीतर आई एक गंभीर दरार ने प्रशासन, विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ा दी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सड़क से करीब 100 मीटर ऊपर पहाड़ी में लगभग 60 सेंटीमीटर चौड़ी और 26 मीटर गहरी दरार बन गई है, जिससे पहाड़ दो हिस्सों में विभाजित होता दिखाई दे रहा है। यह स्थिति न केवल हाईवे की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर रही है, बल्कि भविष्य में बड़े भूस्खलन की आशंका भी जता रही है।
एक सप्ताह में होगा सर्वे, केंद्र को भेजी जाएगी रिपोर्ट
तोताघाटी में उत्पन्न इस खतरनाक स्थिति को लेकर टीएचडीसी (THDC) को सर्वे का जिम्मा सौंपा गया है। टीएचडीसी के अनुसार, एक सप्ताह के भीतर दरार का तकनीकी सर्वे किया जाएगा और क्रैक मीटर के माध्यम से पहाड़ी की स्थिरता का अध्ययन किया जाएगा। सर्वे रिपोर्ट राज्य शासन के माध्यम से केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय को भेजी जाएगी। प्रशासन का लक्ष्य है कि चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले इस दरार का उपचार कर लिया जाए।
2016 से चल रही परियोजना, अब बन रही मुसीबत
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने दिसंबर 2016 में ऑल वेदर रोड परियोजना की शुरुआत की थी। इसके तहत ऋषिकेश–बदरीनाथ हाईवे सहित कई मार्गों का चौड़ीकरण किया गया। हालांकि, सड़क चौड़ी करने के लिए बड़े पैमाने पर पहाड़ों की कटाई की गई, जिसका असर अब दरारों, भूस्खलन और पत्थर गिरने की घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है।
पत्थर गिरने से दुर्घटनाओं का खतरा बरकरार
तोताघाटी क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण के बाद से लगातार पहाड़ी से पत्थर गिरने की घटनाएं सामने आ रही हैं। कई बार इसके कारण हाईवे बाधित हो चुका है और यात्रियों की जान जोखिम में पड़ जाती है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने 1 मार्च 2021 को टीएचडीसी को हाईवे के डेंजर जोन के उपचार के लिए कंसल्टेंसी एजेंसी नियुक्त किया था।
टीएचडीसी द्वारा कौड़ियाला से तीनधारा तक पहले चरण का कार्य पूरा किया जा चुका है, जबकि अब तोताघाटी के मुख्य क्षेत्र में दूसरे चरण का कार्य किया जाना शेष है।
चारधाम यात्रा से पहले समाधान का दावा
प्रशासन का कहना है कि मुख्य सड़क से ऊपर स्थित इन वर्टिकल पहाड़ियों में आई दरार का स्थायी समाधान खोजा जाएगा और चारधाम यात्रा से पहले इसे भरने व सुरक्षित करने का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि केवल तात्कालिक मरम्मत नहीं, बल्कि परियोजना की पर्यावरणीय समीक्षा भी जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसे खतरे दोबारा न उभरें।