
नई दिल्ली: भारतीय रुपया आज डॉलर के मुकाबले पहली बार 90 के पार चला गया। विदेशी निवेश में कमी, आयातकों की लगातार बढ़ती मांग और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता के कारण रुपये में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। आरबीआई के हस्तक्षेप और डॉलर इंडेक्स में कमजोरी के बावजूद रुपया लगातार पांचवें सत्र में गिरा।
एक निजी बैंक के करेंसी ट्रेडर ने रॉयटर्स को बताया कि 88.80 का स्तर लंबे समय से बाजार का मनोवैज्ञानिक सहारा था। इस स्तर के पार जाने के बाद रुपया अब उन कारकों के प्रति और अधिक संवेदनशील हो गया है जो इसे नीचे खींच रहे हैं, जैसे विदेशी निवेश में नरमी, आयातकों की लगातार मांग और सट्टेबाजों की बढ़ती पोजीशन।
कोटक सिक्योरिटीज के कमोडिटी एवं करेंसी हेड अनिंद्य बनर्जी ने कहा, “सट्टेबाज अपनी पोजीशन कवर कर रहे हैं और आयातकों की लगातार मांग रुपये पर दबाव डाल रही है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की निकासी और येन कैरी ट्रेड के वापस लिए जाने के शुरुआती संकेत भी रुपये को प्रभावित कर रहे हैं। साथ ही भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता इसका एक अहम कारण है।”
बाजार पर असर
रुपए की कमजोरी से भारतीय इक्विटी बाजार भी प्रभावित हुआ है। जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट डॉ. वीके विजयकुमार ने कहा, “निफ्टी अपने रिकॉर्ड स्तर से लगभग 300 अंक नीचे आ गया है। वास्तविक चिंता रुपये में लगातार गिरावट और आगे कमजोरी का डर है, क्योंकि RBI मुद्रा का समर्थन करने के लिए पर्याप्त हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। इससे FIIs भी सुधारते फंडामेंटल्स के बावजूद बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं।”
विजयकुमार ने यह भी कहा कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की पुष्टि रुपये की गिरावट को रोक सकती है या उलट सकती है, लेकिन यह काफी हद तक उस समझौते के तहत भारत पर लगाए जाने वाले टैरिफ पर निर्भर करेगा।
रुपये का भविष्य
एमके ग्लोबल के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 के बाकी समय में रुपये की कीमत 88 से 91 के बीच रहने की संभावना है। इस साल रुपये ने बाकी एशियाई मुद्राओं की तुलना में कमजोर प्रदर्शन किया है और इसमें 4.7% की गिरावट आई है, जबकि एशियाई अन्य प्रमुख मुद्राओं में 2.4% की वृद्धि देखी गई है।