Tuesday, December 2

केके पाठक बनाम नीतीश कैबिनेट: शिक्षा विभाग में सख्त फैसलों ने खोला मंत्री मोर्चा

रवि सिन्हा, पटना: बिहार सरकार के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी केके पाठक अपनी कड़क और सख्त कार्यशैली के लिए हमेशा चर्चा में रहते थे। चाहे शिक्षा विभाग हो या मद्य निषेध विभाग, उनके फैसले और कार्यप्रणाली अक्सर संबंधित मंत्रियों के साथ तनाव का कारण बनते रहे। विशेष रूप से शिक्षा विभाग, जो सीधे जनता से जुड़ा है, वहां उनकी नीतियाँ कई बार विवाद का विषय बन गईं।

मंत्रियों का विरोध और गंभीर आरोप
जेडीयू के रत्नेश सदा ने केके पाठक पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वे सामंती विचारधारा को लागू करना चाहते हैं। महादलित टोले के शिक्षकों की उपस्थिति के आधार पर वेतन कटौती की नई गाइडलाइन जारी करना रत्नेश सदा के अनुसार अनुचित था। उन्होंने स्पष्ट किया कि 90 प्रतिशत बच्चों की उपस्थिति न होने पर शिक्षकों का वेतन काटना गलत है और इसका विरोध किया गया।

वहीं, शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने भी केके पाठक की कार्यशैली पर नाराजगी जताते हुए पीत पत्र जारी किया। पत्र में उन्होंने लिखा कि कई मामलों में सरकार के नियमों और कार्य संहिता के अनुसार कार्य नहीं कराया जा रहा है। पीत पत्र के जरिए शिक्षा मंत्री ने विभागीय अधिकारियों को स्पष्ट संदेश दिया कि पदाधिकारियों को अपने कर्तव्यों का पालन करना अनिवार्य है और कार्यशैली में सुधार लाने की जरूरत है।

शिक्षा में सुधार की पहल
केके पाठक ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई सख्त कदम उठाए। उन्होंने शिक्षकों द्वारा फर्जी एडमिशन दिखाए जाने और प्रमाणपत्रों में फर्जीवाड़े पर कड़ा नियंत्रण किया। सरकारी धन की अनियमितताओं को रोकने के लिए उन्होंने स्कूलों में निगरानी बढ़ाई।

केंद्रीय प्रतिनियुक्ति और नई जिम्मेदारी
बाद में केके पाठक को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया गया। कार्मिक मंत्रालय के आदेश के अनुसार, मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने उनके रिक्त संयुक्त सचिव पद को अस्थायी रूप से उन्नत करके मंत्रिमंडल सचिवालय में अतिरिक्त सचिव के रूप में नियुक्ति को मंजूरी दी।

इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट होता है कि बिहार में शिक्षा सुधार के लिए सख्त कदम उठाने वाले अधिकारी और मंत्रियों के बीच तनाव असामान्य नहीं है, लेकिन केके पाठक की कार्यशैली ने शिक्षा विभाग में आवश्यक सुधारों को गति दी।

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