Tuesday, December 2

‘मुसलमान स्वेच्छा से काशी-मथुरा सौंप दें, लेकिन हिंदू भी नई मांग न उठाएं’ — ASI के पूर्व अधिकारी केके मुहम्मद की सलाह

लखनऊ, 2 दिसंबर। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक के.के. मुहम्मद ने देश में मंदिर-मस्जिद विवादों पर बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि मथुरा और काशी (ज्ञानवापी) हिंदू समुदाय के लिए वैसा ही महत्व रखते हैं, जैसा मुस्लिम समुदाय के लिए मक्का और मदीना। ऐसे में वे मुसलमानों से अपील करते हैं कि वे इन दोनों स्थलों को स्वेच्छा से हिंदुओं को सौंप दें।
हालाँकि उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि हिंदू समुदाय को भी इन तीन प्रमुख स्थलों—अयोध्या, काशी और मथुरा—के अलावा कोई नई मांग नहीं उठानी चाहिए, क्योंकि इससे देश में अनावश्यक तनाव बढ़ेगा।

‘अयोध्या विवाद वामपंथी विचारधारा का प्रचार था’

इंडिया टुडे को दिए बयान में केके मुहम्मद ने दावा किया कि अयोध्या विवाद को अनावश्यक रूप से एक खास विचारधारा द्वारा हवा दी गई।
वह वर्ष 1976 में प्रो. बी.बी. लाल के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद स्थल पर हुई खुदाई से जुड़े थे। उनका कहना है कि एक प्रमुख वामपंथी इतिहासकार—जो न तो पुरातत्वविद् थे और न ही खुदाई स्थल पर कभी गए—ने मुस्लिम समाज में यह धारणा फैलाई कि मस्जिद के नीचे मंदिर का कोई प्रमाण नहीं मिला।
मुहम्मद ने कहा कि यही झूठ बाद में बड़े विवाद में तब्दील हुआ।

‘जो लोग आरोप लगा रहे थे, वे कभी साइट पर गए ही नहीं’

केके मुहम्मद ने कहा कि जिस इतिहासकार ने मंदिर के अवशेष न मिलने की बात कही, वह खुदाई से पहले, दौरान या बाद में कभी भी अयोध्या नहीं गया था।
बिना जानकारी के फैलाई गई इन बातों का जवाब पहली बार प्रो. बी.बी. लाल ने दिया था, जिन्होंने खुद खुदाई का नेतृत्व किया था।

‘काशी-मथुरा हिंदुओं के लिए अत्यंत पवित्र’

वर्तमान में चल रहे कई धार्मिक विवादों पर उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि के साथ-साथ काशी और मथुरा की आस्था बेहद गहरी है।
उन्होंने सलाह दी कि मुस्लिम समुदाय को बड़े दिल से इन स्थानों को सौंप देना चाहिए, लेकिन साथ ही चेतावनी दी कि इसके बाद देश में और दावे खड़े करना समस्याओं को बढ़ाएगा।

‘ताजमहल को लेकर दावे पूरी तरह गलत’

कुछ संगठनों द्वारा ताजमहल को मंदिर बताने के दावों पर केके मुहम्मद ने कहा कि ये सभी तथ्यहीन और भ्रम फैलाने वाले हैं।
उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार यह भूमि पहले राजा मान सिंह की थी, बाद में जय सिंह को दी गई और फिर शाहजहां को हस्तांतरित हुई। ये रिकॉर्ड आज भी बीकानेर और जयपुर संग्रहालयों में उपलब्ध हैं।

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