
तेल अवीव/नई दिल्ली: इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार ने भारत में सदियों से रह रहे ब्नेई मेनाशे समुदाय को इजरायल में बसाने की मंजूरी दे दी है। इस योजना के तहत अगले साल 1,200 लोगों का पहला समूह इजरायल जाएगा। इजरायल सरकार ने इन लोगों के पुनर्वास, भाषा प्रशिक्षण, रोजगार और आर्थिक सहायता की व्यवस्था भी की है।
खोई हुई यहूदी जनजातियों का रहस्य
इतिहासकारों और धार्मिक विद्वानों के अनुसार, करीब 720 ईसा पूर्व नियो-असीरियन साम्राज्य ने उत्तरी इजरायल पर कब्जा कर लिया था। इस दौरान 12 में से 10 जनजातियां निर्वासन में चली गईं और उनका अस्तित्व लगभग अज्ञात हो गया। आज तक दुनिया के विभिन्न समुदाय, जैसे इथियोपिया के बीटा इजरायल, भारत-म्यांमार सीमा के ब्नेई मेनाशे, अफ्रीका के लेंबा और अमेरिकी मूल-निवासी समूह, अपने आप को इन खोई हुई जनजातियों से जोड़ते हैं।
पश्तूनों और इजरायल के बीच संभावित कनेक्शन
इजरायल के शोधकर्ताओं की नजर अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्तूनों पर है। उनके जनजातीय नाम और परंपराएं इजरायली यहूदी जनजातियों से चौंकाने वाली समानताएं दिखाती हैं। उदाहरण के लिए यूसुफजई (यूसुफ यानी जोसेफ के पुत्र) और अफरीदी (कथित रूप से एप्रैम से जुड़ा)।
हालांकि आधुनिक पश्तून इस विचार को सिरे से नकारते हैं और अपनी मुस्लिम पहचान को प्राथमिकता देते हैं। फिर भी उनके भोजन के नियम, विवाह की रस्में, सब्त के दिन मोमबत्ती जलाने की प्रथा और कुछ कपड़ों की परंपराएं यह संभावना जीवित रखती हैं कि उनकी जड़ें कहीं न कहीं प्राचीन इजरायल से जुड़ी हो सकती हैं।
वैज्ञानिक शोध और अनसुलझी गुत्थी
आनुवंशिक और ऐतिहासिक शोध समय-समय पर किए गए हैं, लेकिन अब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है जो पूरी तरह इस थ्योरी को साबित या खारिज कर सके। इजरायल और भारत के बीच ब्नेई मेनाशे की वापसी इस रहस्य को और अधिक चर्चा में ला रही है और इतिहासकार, धर्मशास्त्री और शोधकर्ता इस प्राचीन पहेली को सुलझाने के लिए उत्सुक हैं।
निष्कर्ष
पश्तूनों और खोई हुई यहूदी जनजातियों के बीच रहस्य अभी अनसुलझा है। इतिहास, परंपरा और आनुवंशिक अनुसंधान इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं: क्या पाकिस्तान-अफगानिस्तान के पश्तून वास्तव में इजरायल की खोई हुई यहूदी जनजातियों के वंशज हैं या केवल सांस्कृतिक समानताएं ही उनके बीच जुड़ाव का संकेत देती हैं?
