Saturday, December 27

विलुप्त होने के कगार पर था खापली गेहूं, अब आम गेहूं से पांच गुना महंगा

 

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नई दिल्ली: खापली गेहूं, जिसे ‘एमर व्हीट’ भी कहा जाता है, कभी विलुप्त होने के कगार पर था। लेकिन अब शहरी क्षेत्रों में लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों के बढ़ने और सेहतमंद खाने की बढ़ती मांग के चलते इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। आज यह सामान्य गेहूं के मुकाबले पांच गुना महंगा बिक रहा है।

 

सेहत का राज:

खापली गेहूं में फाइबर और प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण यह धीरे-धीरे ग्लूकोज को रक्त में छोड़ता है। यही वजह है कि यह डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है।

 

बाजार में तेजी:

पिछले दो साल में आईटीसी, अर्बन प्लेटर, अन्वेषण, गिरऑर्गेनिक, सात्विक, Conscious Food और आंवला अर्थ जैसी कई कंपनियों ने खापली गेहूं का आटा बाजार में उतारा है। Two Brothers Organic Farms के को-फाउंडर सत्यजीत हंगे के अनुसार, पिछले दो साल में उनके खापली आटे की बिक्री सात से आठ गुना बढ़ गई है।

 

कीमतें और बिक्री:

 

आम गेहूं का आटा: लगभग 50 रुपये प्रति किलो

ITC खापली आटा: 159 रुपये प्रति किलो

Two Brothers Organic Farms: लगभग 250 रुपये प्रति किलो

कुट्टू आटा: 450-500 रुपये प्रति किलो

 

विशेषज्ञों के अनुसार, खापली आटे की बिक्री कुल आटे की बिक्री से लगभग पांच गुना तेज़ी से बढ़ रही है।

 

कौन खरीद रहा है खापली आटा:

यह आटा मुख्य रूप से शहरी अमीर और फाइव-स्टार होटल्स में इस्तेमाल हो रहा है। साथ ही, वे लोग भी इसे पसंद कर रहे हैं जिन्होंने बाजरा जैसे अनाज अपनाए हैं लेकिन गेहूं को पूरी तरह नहीं छोड़ना चाहते।

 

वैज्ञानिक पहलु:

पुणे के आगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक मनोज ओक के अनुसार, खापली गेहूं में एंडोस्पर्म और चोकर का अनुपात सामान्य गेहूं से अलग है। हालांकि पोषण संबंधी गुणों को पूरी तरह समझने के लिए और रिसर्च की जरूरत है।

 

निष्कर्ष:

शहरी लोगों की बढ़ती सेहत-जागरूकता और फंक्शनल फूड की मांग ने खापली गेहूं को नया जीवन और बाजार में नई पहचान दी है। अब यह गेहूं केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि निवेश और पैदावार के लिहाज से भी महत्वपूर्ण बनता जा रहा है।

 

 

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