Thursday, December 25

पर्यावरण पर पीएम मोदी की कथनी–करनी में टकराव, अरावली को लेकर कांग्रेस का तीखा हमला

 

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कांग्रेस ने अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर केंद्र सरकार की नीति पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा प्रहार किया है। पार्टी का आरोप है कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री की वैश्विक मंचों पर की गई घोषणाओं और देश के भीतर अपनाई जा रही नीतियों के बीच गहरा विरोधाभास है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अरावली की प्रस्तावित नई परिभाषा को “खतरनाक और विनाशकारी” बताते हुए कहा कि इससे देश की एक अत्यंत संवेदनशील पारिस्थितिकी प्रणाली को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी।

 

जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर कहा कि मोदी सरकार द्वारा अरावली पर्वतमाला की पुनर्परिभाषा विशेषज्ञों की राय के विपरीत है। उन्होंने भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि अरावली की 20 मीटर से अधिक ऊंची पहाड़ियों में से केवल 8.7 प्रतिशत हिस्सा ही 100 मीटर से अधिक ऊंचा है। यदि नई परिभाषा में ऊंचाई को आधार बनाया गया, तो अरावली का 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र संरक्षित दायरे से बाहर हो जाएगा।

 

रमेश के अनुसार, एफएसआई स्वयं यह मानता है कि ऊंचाई आधारित मानक संदिग्ध हैं और ऊंचाई की परवाह किए बिना पूरी अरावली पर्वतमाला को संरक्षित किया जाना चाहिए। इसके बावजूद सरकार जिस दिशा में आगे बढ़ रही है, उससे खनन, रियल एस्टेट और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए रास्ता खुल सकता है, जो पहले से ही क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को और कमजोर कर देगा।

 

कांग्रेस नेता ने इसे पर्यावरण संतुलन पर “दृढ़ हमला” करार देते हुए आरोप लगाया कि मोदी सरकार लगातार प्रदूषण मानकों को ढीला कर रही है, पर्यावरण और वन कानूनों को कमजोर किया जा रहा है तथा राष्ट्रीय हरित अधिकरण जैसी संस्थाओं की भूमिका को सीमित किया जा रहा है।

 

हालांकि केंद्र सरकार ने हाल ही में अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के निर्देश जारी किए हैं और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) को पूरे अरावली क्षेत्र में अतिरिक्त जोन की पहचान करने का आदेश दिया है। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि ये कदम नीतिगत स्तर पर किए जा रहे नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

 

जयराम रमेश ने दो टूक कहा कि पर्यावरण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री की वैश्विक कथनी और स्थानीय करनी के बीच तालमेल का अभाव साफ नजर आता है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अरावली जैसी प्राचीन और जीवनदायिनी पर्वतमाला को कमजोर किया गया, तो इसका असर केवल पर्यावरण पर ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य पर भी पड़ेगा।

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