Thursday, December 25

अवैध प्रवासियों पर सिस्टम की नाकामी उजागर, शशि थरूर बोले—देश से निकालने का सरकार को पूरा अधिकार

 

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कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने देश में अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर सरकार की जिम्मेदारी और सीमा प्रबंधन व्यवस्था की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि अवैध प्रवासियों की मौजूदगी अपने आप में सिस्टम की नाकामियों को दर्शाती है और इससे सख्ती के साथ-साथ कानूनी और संतुलित तरीके से निपटने की आवश्यकता है।

 

तिरुवनंतपुरम से सांसद थरूर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि लोग अवैध रूप से देश में प्रवेश कर रहे हैं या वीजा अवधि समाप्त होने के बावजूद भारत में रह रहे हैं, तो यह बॉर्डर मैनेजमेंट और इमिग्रेशन कंट्रोल में कमियों का संकेत है। उन्होंने सवाल उठाया, “अगर अवैध अप्रवासी हमारे देश में आ रहे हैं, तो क्या यह हमारी नाकामी नहीं है? क्या हमें अपनी सीमाओं को और बेहतर ढंग से नियंत्रित नहीं करना चाहिए?”

 

थरूर ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में कार्रवाई करने का सरकार को पूरा अधिकार है। उन्होंने दो टूक कहा कि जो लोग गैर-कानूनी तरीके से देश में रह रहे हैं या वीजा खत्म होने के बाद भी ठहरे हुए हैं, उन्हें देश से बाहर करने का अधिकार सरकार के पास है। “इसलिए सरकार को अपना काम करने दिया जाना चाहिए,” उन्होंने कहा।

 

हालांकि, थरूर ने कानून के शासन के पालन के साथ-साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि विशेषकर राजनीतिक और मानवीय परिस्थितियों से जुड़े सीमा-पार मामलों में संवेदनशीलता और संतुलन बेहद जरूरी है।

 

इसी क्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत में रहने की अनुमति देने के फैसले का बचाव किया। उन्होंने इसे मानवीय मूल्यों पर आधारित निर्णय बताया और कहा कि भारत ने उन्हें वापस जाने के लिए मजबूर न करके “सही मानवीय भावना” का परिचय दिया है। थरूर ने भारत-बांग्लादेश के लंबे संबंधों और शेख हसीना की भारत की भरोसेमंद मित्र के रूप में भूमिका का भी उल्लेख किया।

 

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि देश निकाला या प्रत्यर्पण जैसे मामले जटिल कानूनी ढांचों—जिनमें अंतरराष्ट्रीय संधियां और अपवाद शामिल होते हैं—के तहत आते हैं और इनकी सावधानीपूर्वक समीक्षा आवश्यक होती है। थरूर के इस बयान को अवैध प्रवास, सीमा सुरक्षा और मानवीय मूल्यों के बीच संतुलन की बहस के रूप में देखा जा रहा है।

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