Tuesday, December 23

14 दिनों की निर्णायक जंग, जिसने रचा बांग्लादेश का इतिहास भारत के बिना अधूरी थी आज़ादी की यह कहानी

ढाका/नई दिल्ली।
दक्षिण एशिया के इतिहास में वर्ष 1971 वह मोड़ था, जब केवल 14 दिनों की सैन्य कार्रवाई ने एक नए राष्ट्र — बांग्लादेश — को जन्म दिया। यह लड़ाई अचानक नहीं भड़की थी, बल्कि इसके पीछे वर्षों का राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दमन छिपा था। इस ऐतिहासिक परिवर्तन में भारत की भूमिका निर्णायक, अनिवार्य और मानवीय थी। यदि भारत आगे न बढ़ता, तो शायद बांग्लादेश का अस्तित्व आज भी एक अधूरा सपना ही रहता।

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एक देश, दो हिस्से और गहरी खाई

1947 में बना पाकिस्तान भौगोलिक ही नहीं, बल्कि भाषा, संस्कृति और पहचान के स्तर पर भी दो टुकड़ों में बंटा हुआ था। पश्चिमी पाकिस्तान की सत्ता और संसाधनों पर पकड़ थी, जबकि पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) की आबादी संख्या में अधिक होने के बावजूद राजनीतिक हाशिये पर थी।
1948 में मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा उर्दू को एकमात्र राष्ट्रभाषा घोषित किए जाने से असंतोष और गहरा गया। बंगाली भाषा और संस्कृति को दबाने की नीति ने विरोध की चिंगारी को आग में बदल दिया।

1970 का जनादेश और लोकतंत्र की हत्या

1970 के आम चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग को स्पष्ट बहुमत मिला, लेकिन सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया गया। यह निर्णय लोकतंत्र की हत्या था। पूर्वी पाकिस्तान में व्यापक जनआंदोलन शुरू हो गया, जिसे दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने क्रूर रास्ता अपनाया।

ऑपरेशन सर्चलाइट: नरसंहार की शुरुआत

25 मार्च 1971 की रात पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट’ शुरू किया। ढाका सहित पूरे पूर्वी पाकिस्तान में निर्दोष नागरिकों, छात्रों और बुद्धिजीवियों का नरसंहार हुआ। शेख मुजीब को गिरफ्तार कर पश्चिमी पाकिस्तान भेज दिया गया।
इस दमन ने इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक को जन्म दिया।

भारत बना मानवता का सहारा

पाकिस्तानी सेना की बर्बरता से एक करोड़ से अधिक शरणार्थी भारत में दाखिल हुए। भारत ने आर्थिक दबाव और संसाधनों की सीमाओं के बावजूद 7 राज्यों में 825 शरणार्थी शिविर स्थापित किए। यह केवल कूटनीतिक समर्थन नहीं था, बल्कि मानवता के पक्ष में खड़ा होना था।

जब युद्ध टाला नहीं जा सका

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारतीय हवाई अड्डों पर हमला किया। इसके बाद भारत के पास युद्ध के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
भारतीय सेना ने मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर पूर्वी पाकिस्तान में निर्णायक सैन्य अभियान शुरू किया। नौसेना का ऑपरेशन ट्राइडेंट और थलसेना की तेज़ रणनीति ने पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ दी।

16 दिसंबर 1971: इतिहास का स्वर्णिम दिन

महज़ 14 दिनों में युद्ध का अंत हो गया।
16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण किया।
93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का सरेंडर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था।

एक नए राष्ट्र का उदय

युद्धविराम के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के मानचित्र पर उभरा। शेख मुजीबुर रहमान इसके पहले प्रधानमंत्री बने।
यह केवल पाकिस्तान की हार नहीं थी, बल्कि न्याय, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की जीत थी।

इतिहास का निष्कर्ष

बांग्लादेश की आज़ादी केवल एक युद्ध का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह भारत की रणनीतिक दूरदर्शिता, मानवीय संवेदना और साहसिक नेतृत्व की गाथा है।
इतिहास गवाह है —
भारत के बिना बांग्लादेश की आज़ादी संभव नहीं थी।

 

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