Tuesday, December 23

एक सीट, दो दलित नेता और सियासी दबाव: जीतन राम मांझी बनाम चिराग पासवान

 

This slideshow requires JavaScript.

 

पटना: केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर (HAM-S) के संस्थापक अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने बिहार की राजनीति में सर्द मौसम के बीच सियासी पारा बढ़ा दिया है। राज्यसभा की सीट को लेकर मांझी ने अपनी दावेदारी जताई है, जिससे दलित राजनीति में नई उबाल आ गई है। इस बार भी उनकी सीधी टक्कर चिराग पासवान से हो रही है।

 

दलित राजनीति में होड़

 

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान ही दलित नेताओं के बीच सियासी जंग साफ दिखी थी। चिराग पासवान ने शुरुआत में 40 सीटों की मांग की थी, जो बाद में घटकर 29 पर ठहरी और इनमें से 19 पर जीत हासिल की। वहीं, जीतन राम मांझी ने भी जोर देकर दावा किया था कि उनकी पार्टी के चार विधायक हैं और उनके लिए छह विधानसभा सीटें तथा एक राज्यसभा सीट पर समझौता हुआ है।

 

प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति

 

राज्यसभा की 5 सीटों को लेकर जब बिहार की राजनीति गरमाई, मांझी ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क कर अपने वादों को याद दिलाया। उनका सीधा संदेश है – “एक सीट पर मेरा भी अधिकार है।” यह कदम उनके चाहने वालों को यह संदेश देने के समान है कि दलित राजनीति में उनकी अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

 

इस्तीफा तक का विकल्प

 

मांझी ने कहा है कि यदि उन्हें राज्यसभा की सीट नहीं मिली, तो केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने तक का विकल्प उनके सामने है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार, मांझी की नजरें एमएलसी चुनाव पर भी टिकी हुई हैं। राज्यसभा सीट न मिलने पर भी एक एमएलसी पद सुनिश्चित किया जा सकता है, जिससे उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स सफल मानी जाएगी।

 

निष्कर्ष: बिहार की दलित राजनीति में यह संघर्ष सिर्फ एक सीट का नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक प्रभाव और पहचान को कायम रखने की जंग है। मांझी और चिराग के बीच यह टक्कर आगे भी सियासी दिलचस्पी बनाए रखेगी।

 

Leave a Reply