
उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित बुलंदशहर गैंगरेप कांड में लगभग नौ साल बाद अदालत द्वारा दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बावजूद पीड़िता को न्याय अधूरा लगता है। फैसले के बाद मुख्य आरोपी जुबैर का अदालत परिसर में हंसते हुए नजर आना पीड़िता और उसके परिवार के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा साबित हुआ।
पीड़िता ने गहरे आक्रोश और पीड़ा के साथ कहा, “ऐसे हैवानों को जेल नहीं, चौराहे पर फांसी मिलनी चाहिए। मैं कानून की पढ़ाई कर रही हूं। जज बनकर ऐसी पीड़िताओं को जरूर इंसाफ दिलाऊंगी।”
उसने बताया कि घटना की याद आज भी उसे सोने नहीं देती। “वह काली रात आज भी रूह कंपा देती है। मेरा पूरा परिवार बर्बाद हो गया। हमें अपनी पहचान छुपाकर गुमनामी की जिंदगी जीनी पड़ रही है।”
‘आज भी कानों में गूंजती हैं बेटी की चीखें’
पीड़िता के पिता की आंखें आज भी उस रात को याद कर भर आती हैं। उन्होंने बताया कि 2016 में दादी के अंतिम संस्कार के लिए जाते समय रात करीब एक बजे हाईवे पर उनकी गाड़ी रोकी गई।
“झाड़ियों से 7-8 लोग निकले, बंदूक के बल पर हमें घेर लिया। मेरी पत्नी और बेटी को घसीटकर ले गए। मैंने विरोध किया तो हाथ-पैर बांधकर पीटा गया। मां-बेटी की चीखें आज भी मेरे कानों में गूंजती हैं।
उन्होंने बताया कि घटना से पहले डायल-100 पर कॉल की गई थी, लेकिन समय पर मदद नहीं मिली। *“अगर पुलिस समय पर पहुंच जाती, तो शायद मेरी बेटी की जिंदगी बर्बाद न होती।”
पुलिस की लापरवाही और फर्जी खुलासा
घटना के समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मामले में पुलिस की गंभीर लापरवाही सामने आई, जिसके चलते तत्कालीन एसएसपी समेत 17 पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया।
पहले पुलिस ने तीन निर्दोष लोगों को गिरफ्तार कर फर्जी खुलासा किया, लेकिन बाद में हाई कोर्ट के आदेश पर जांच सीबीआई को सौंपी गई।
डीएनए सबूत बने फैसले की रीढ़
सीबीआई जांच में बावरिया गिरोह के सदस्यों जुबैर उर्फ सुनील उर्फ परवेज, सलीम और साजिद को दोषी ठहराया गया।
सरकारी अधिवक्ता के अनुसार, पीड़िता के कपड़ों पर मिले सीमन और डीएनए जांच ने मामले को निर्णायक मोड़ दिया। यही वैज्ञानिक साक्ष्य दोष सिद्ध करने में सबसे अहम साबित हुए।
दो आरोपियों का एनकाउंटर
मामले से जुड़े दो अन्य आरोपियों को अलग-अलग मामलों में हरियाणा पुलिस और नोएडा एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया था, जबकि अन्य आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य न होने के कारण नाम हटा दिए गए।
बचाव पक्ष की आपत्ति, हाई कोर्ट जाने की तैयारी
दोषियों के वकील ने फैसले पर असंतोष जताते हुए कहा कि वे हाई कोर्ट में अपील करेंगे। वहीं, सजा सुनाए जाने के बाद जुबैर ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा, “मुझे झूठा फंसाया गया है। मेरे छोटे बच्चे हैं। मुझे हाई कोर्ट से न्याय मिलेगा।”
अदालत की सख्त टिप्पणी
स्पेशल पॉक्सो कोर्ट के न्यायाधीश ने फैसले में कहा,
“ऐसे राक्षसी कृत्य करने वालों को सभ्य समाज से दूर रखना जरूरी है। जब तक वे जीवित हैं, जेल ही उनकी जगह है।”
यह मामला न केवल न्याय व्यवस्था की परीक्षा है, बल्कि पुलिस की जवाबदेही और पीड़ितों के लंबे संघर्ष की भी गवाही देता है। सवाल यह है—क्या उम्रकैद सच में उस दर्द की भरपाई कर सकती है, जो एक परिवार ने जीवन भर के लिए झेल लिया?