Saturday, December 20

सुप्रीम कोर्ट: बोलने की आजादी की कोई सीमा नहीं, जमानत से इनकार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि बोलने की आजादी का दुरुपयोग करने वाले याचिकाकर्ता को अदालत से राहत नहीं मिल सकती। बेंगलुरु के 24 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंसी छात्र को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया। छात्र ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ‘जवाहरलाल नेहरू सटायर’ अकाउंट से प्रधानमंत्री और उनकी मां के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट की थी।

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कोर्ट ने छात्र को सुझाव दिया कि वह गुजरात हाईकोर्ट में जाकर अपनी बात रखे। चीफ जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने कहा, “आपको अपमानजनक शब्दों के लिए कोई पछतावा नहीं दिखाने वाले याचिकाकर्ता को अदालत से विवेकाधीन राहत नहीं मिलनी चाहिए।”

मामले का विवरण:

  • गुजरात निवासी ने 7 नवंबर को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
  • शिकायत में कहा गया कि छात्र ने प्रधानमंत्री और उनकी मां के खिलाफ अपमानजनक सामग्री पोस्ट की, जिससे उनकी गरिमा और भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि प्रभावित हुई।
  • पुलिस ने FIR दर्ज की और छात्र से पूछताछ के लिए बेंगलुरु गई।

छात्र के वकील का कहना है कि उनके मुवक्किल ने केवल एक पोस्ट पर सवाल उठाया था और वह गिरफ्तारी से बचना चाहते थे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल होनी चाहिए। किसी भी अधिकार का दुरुपयोग कानून के तहत कार्रवाई का कारण बन सकता है।

यह फैसला सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की सीमा और जिम्मेदारी को लेकर एक बड़ा सबक है और दर्शाता है कि कानून किसी भी तरह के दुरुपयोग को बर्दाश्त नहीं करता।

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