
नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना (IAF) ने हाल ही में 97 अतिरिक्त हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस मार्क-1A के ऑर्डर दिए, जिनकी अनुमानित कीमत 62,370 करोड़ रुपये है। यह तेजस का चौथा बड़ा ऑर्डर है और आने वाले वर्षों में यह भारत की वायु शक्ति की रीढ़ बनने की उम्मीद है। कुल मिलाकर 220 तेजस विमान शामिल किए जाएंगे, जिससे यह सुखोई-30MKI के बाद दूसरा सबसे बड़ा लड़ाकू बेड़ा बन जाएगा।
IAF के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत के पास फ्रांसीसी राफेल, रूस से खरीदे गए सुखोई-30MKI और स्वदेशी तेजस न होते, तो वायु सेना के स्क्वाड्रन संख्या में गंभीर कमी आ जाती और पाकिस्तान व चीन जैसे दुश्मनों के लिए भारत का खौफ बनाए रखना कठिन हो जाता।
तेजस बना भारतीय वायु सेना के लिए रामबाण
LCA तेजस का विकास 1980 के दशक में मिग-21 और अजीत विमानों के विकल्प के रूप में शुरू हुआ। हालांकि शुरुआत में IAF ने इसे अपनाने में अनिच्छा जताई, लेकिन मार्क-1A ऑर्डर के बाद यह भारतीय वायु सेना की घटती स्क्वाड्रन क्षमता को पूरा करने में मुख्य भूमिका निभा रहा है।
विदेशी विमानों की खरीद विकल्प नहीं बन पाई
पिछले दो दशकों में भारत ने 100 से अधिक मध्यम बहु-भूमिका लड़ाकू विमानों (MMRCA) के लिए टेंडर निकाले, लेकिन उनमें से एक भी विमान IAF में शामिल नहीं हो पाया। 2016 में 36 राफेल विमानों की खरीद हुई, लेकिन इसके बावजूद स्क्वाड्रन संख्या घटती रही।
Su-30MKI और तेजस ही निकट-अवधि समाधान
भारतीय वायु सेना ने Su-30MKI की अतिरिक्त खरीद और तेजस ऑर्डर के जरिए अपनी आवश्यकताओं को पूरा किया है। तेजस न केवल स्वदेशी उत्पादन और परिचालन लागत में कमी लाता है, बल्कि भारत की रक्षा क्षमता और तकनीकी आत्मनिर्भरता को भी मजबूत करता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले वर्षों में तेजस और Su-30MKI ही IAF के मुख्य लड़ाकू विमान रहेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत की वायु सुरक्षा मजबूत और सतर्क बनी रहे।