
भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है। राज्यसभा ने हाल ही में ‘सस्टेनेबल हार्नेसिंग ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ (SHANTI) बिल को मंजूरी दे दी। इस बिल के पास होने से परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा अब केवल प्रशासनिक नियमों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसे कानूनी रूप दिया गया है।
सरकार का कहना है कि यह बिल परमाणु नुकसान के लिए व्यावहारिक नागरिक दायित्व व्यवस्था बनाएगा और एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB) को कानूनी दर्जा देगा। इससे परमाणु सुरक्षा का नियम लगातार लागू होगा, न कि सिर्फ एक बार की अनुमति या दुर्घटना के बाद।
पहले कहां थी दिक्कत?
पुराने कानूनों के तहत परमाणु सुरक्षा की देखरेख मुख्य रूप से सरकारी अधिकारों और प्रशासनिक नियमों पर निर्भर थी। निर्माण, संचालन, परिवहन, भंडारण या कचरा प्रबंधन जैसे हर चरण के लिए अलग से सुरक्षा मंजूरी या कानूनी बाध्यता नहीं थी। 2010 का CLND एक्ट भी ज्यादातर दुर्घटना के बाद मुआवजे और बीमा पर ध्यान देता था, रोकथाम पर नहीं।
SHANTI बिल अब ‘संचालन की अनुमति’ को ‘सुरक्षित रूप से संचालन की अनुमति’ से अलग करता है। इसके लिए लाइसेंस और स्वतंत्र सुरक्षा प्राधिकरण दोनों जरूरी होंगे। अब किसी भी विकिरण संबंधी गतिविधि को स्पष्ट सुरक्षा मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकेगा।
क्यों जरूरी था यह बिल?
यह बिल नियमन, प्रवर्तन, नागरिक दायित्व और विवाद समाधान को एक ही कानून में समेटता है। अधिकारी बताते हैं कि अब AERB को सुविधाओं का निरीक्षण, घटनाओं की जांच, बाध्यकारी निर्देश जारी करने और सुरक्षा मानक न पूरा करने पर संचालन निलंबित करने का कानूनी अधिकार मिलेगा। इससे दुर्घटनाओं की रोकथाम और सुरक्षा मानकों का पालन पहले से कहीं अधिक प्रभावी होगा।
एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
डेलॉइट इंडिया के पार्टनर अनुजेश द्विवेदी ने कहा, “मौजूदा कानूनी ढांचे के साथ भारत के लिए लंबे समय में थर्मल पावर की जगह लेना मुश्किल होगा। देश ने दशकों में केवल लगभग 8GW परमाणु क्षमता जोड़ी है। 2047 तक इसे 100GW और 2070 तक 300GW या उससे अधिक तक पहुंचाने के लिए बड़े सुधार जरूरी थे। SHANTI बिल इसी दिशा में पहला कदम है।”
यह बिल न केवल परमाणु सुरक्षा को मजबूत बनाता है, बल्कि भारत की स्वच्छ ऊर्जा जरूरतों को 2047 तक पूरा करने की रणनीति में भी अहम भूमिका निभाएगा।