
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका में हाल ही में सामने आए एक विवाद पर चिंता जताई है। चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि रिटायरमेंट से ठीक पहले जजों द्वारा अचानक कई फैसले सुनाने का चलन बढ़ रहा है, जिससे निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। यह मामला मध्य प्रदेश के एक प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज के सस्पेंशन से जुड़ा है।
क्या हुआ मामला:
मध्य प्रदेश के इस जज को रिटायरमेंट से सिर्फ 10 दिन पहले, 19 नवंबर को सस्पेंड कर दिया गया। जज के वकील सीनियर एडवोकेट विपिन सांघी ने बताया कि उनके मुवक्किल के करियर में कोई कमी नहीं थी और उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में उच्च रेटिंग थी। सस्पेंशन का बहाना उनके द्वारा सुनाए गए दो न्यायिक फैसले बताए गए।
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए:
CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, “याचिकाकर्ता ने रिटायरमेंट से ठीक पहले कई फैसले सुनाए। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण चलन है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गलत फैसलों के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई केवल तभी हो सकती है जब फैसले साफ तौर पर बेईमानी वाले हों, अन्यथा किसी न्यायिक अधिकारी को सस्पेंड नहीं किया जा सकता।
रिटायरमेंट में बदलाव:
यह जज 30 नवंबर को रिटायर होने वाले थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि उनकी रिटायरमेंट एक साल के लिए टाली जाए, क्योंकि राज्य कर्मचारियों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाकर 62 साल कर दी गई थी। अब यह अधिकारी 30 नवंबर, 2026 को रिटायर होंगे।
सिस्टम और पारदर्शिता पर सवाल:
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जजों को RTI के जरिए जानकारी लेने का रास्ता अपनाना सामान्य नहीं माना जाता। इसके बजाय याचिकाकर्ता हाई कोर्ट में प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, जो चार हफ्ते में फैसला करेगा।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस बात को उजागर करती है कि रिटायरमेंट के करीब जजों के फैसलों पर समीक्षा और पारदर्शिता की आवश्यकता है। न्यायपालिका में निष्पक्षता और जवाबदेही बनाए रखना जरूरी है, ताकि जनता का विश्वास बनाए रखा जा सके।