
मथुरा/वृंदावन। वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज से हुई एक आध्यात्मिक भेंट इन दिनों संत समाज में चर्चा का विषय बनी हुई है। प्रतिष्ठित आध्यात्मिक वक्ता नरेश भैया जी जब अपने परिवार सहित प्रेमानंद महाराज के आश्रम पहुंचे, तो वहां भक्ति, रस और प्रेम से ओतप्रोत एक अत्यंत भावपूर्ण दृश्य देखने को मिला।
गहन आध्यात्मिक संवाद से बंधा संतों का स्नेह
आश्रम में दोनों संतों के बीच निकुंज रस, राधा-माधव भक्ति और सनातन चेतना जैसे गूढ़ विषयों पर लंबी चर्चा हुई। नरेश भैया जी, जो ‘श्रीमन् नारदीय भगवत् निकुंज’ से जुड़े हैं, अपनी विशिष्ट कथावाचन शैली और युवाओं को धर्म से जोड़ने के लिए जाने जाते हैं। उनकी वाणी में भाव, विरह और भक्ति का गहरा संगम देखने को मिला।
विरह की कल्पना ने भिगो दी संत की आंखें
भेंट का सबसे मार्मिक क्षण तब आया, जब नरेश भैया जी ने एक भावपूर्ण रचना के माध्यम से उस समय की कल्पना प्रस्तुत की, जब प्रेमानंद महाराज ब्रज की इस धरा पर न हों। यह सुनते ही प्रेमानंद महाराज भावुक हो उठे और उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली। आश्रम में उपस्थित शिष्य और श्रद्धालु भी इस दृश्य से भीतर तक द्रवित हो गए।
प्रेमानंद महाराज को राधा सखी रूप में किया उकेरित
नरेश भैया जी ने अपनी रचना में प्रेमानंद महाराज को ब्रज की राधा सखी के भाव रूप में चित्रित करते हुए उनके भक्ति प्रेम और रसिक स्वभाव का भावपूर्ण वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महापुरुष शरीर से नहीं, भाव और वाणी से अमर होते हैं।
उन्होंने भावुक स्वर में कहा—
“जब-जब रसिक बात करेंगे, बाबा की चर्चा होगी। बाबा अनंत रसिकों के शब्दों में सदा जीवित रहेंगे।”
संत वाणी की महिमा पर दिया संदेश
नरेश भैया जी ने कहा कि भगवान कण-कण में विद्यमान हैं, लेकिन जब वही बात संतों की वाणी से निकलती है, तो वह असंख्य जीवनों को दिशा और परिवर्तन देती है। यही संत कृपा की महिमा है।
‘इन्होंने हमारा जीवन परिवर्तित कर दिया’ — प्रेमानंद महाराज
नरेश भैया की रचना के उत्तर में प्रेमानंद महाराज ने विनम्र भाव से कहा कि
“भैया जी और पूज्य बाबा ने जो मार्ग दिखाया, उसी को जीवन समर्पित कर दिया। इन्होंने हमारा जीवन परिवर्तित कर दिया।”
यह भेंट केवल दो संतों की मुलाकात नहीं, बल्कि भक्ति, विरह और आध्यात्मिक प्रेम का जीवंत उदाहरण बन गई, जिसने उपस्थित हर व्यक्ति के हृदय को स्पर्श किया।