
एचडीएफसी समूह को इंडसइंड बैंक में 9.5% हिस्सेदारी की अनुमति**
नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े निजी बैंक एचडीएफसी बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से बड़ी नियामकीय राहत मिली है। आरबीआई ने एचडीएफसी बैंक समूह की कंपनियों को इंडसइंड बैंक में 9.50 प्रतिशत तक हिस्सेदारी रखने की अनुमति दे दी है। यह मंजूरी 14 दिसंबर 2026 तक के लिए वैध रहेगी। आरबीआई के इस फैसले से बैंकिंग सेक्टर में हलचल तेज हो गई है।
क्या है आरबीआई का फैसला
आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि एचडीएफसी बैंक और उसकी सहयोगी कंपनियां मिलकर किसी भी स्थिति में इंडसइंड बैंक की कुल शेयर पूंजी या वोटिंग अधिकारों का 9.50% से अधिक हिस्सा नहीं रख सकेंगी। यह अनुमति बैंक और उसके प्रमोटर समूह की संयुक्त हिस्सेदारी पर लागू होगी।
किन कंपनियों पर लागू होगी अनुमति
इस मंजूरी के दायरे में एचडीएफसी बैंक समूह की कई प्रमुख इकाइयां शामिल हैं, जिनमें—
- एचडीएफसी म्यूचुअल फंड
- एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
- एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
- एचडीएफसी पेंशन फंड मैनेजमेंट लिमिटेड
- एचडीएफसी सिक्योरिटीज लिमिटेड
शामिल हैं।
सीधे निवेश से किया इनकार
एचडीएफसी बैंक ने साफ किया है कि बैंक स्वयं इंडसइंड बैंक में प्रत्यक्ष निवेश करने का इरादा नहीं रखता। हालांकि, समूह की विभिन्न कंपनियों द्वारा किए गए संयुक्त निवेश से हिस्सेदारी पहले तय 5% की सीमा से अधिक होने की संभावना बन रही थी। इसी कारण बैंक ने आरबीआई से सीमा बढ़ाने की अनुमति मांगी थी।
24 अक्टूबर को दिया गया था आवेदन
एचडीएफसी बैंक समूह की ओर से यह आवेदन 24 अक्टूबर 2025 को आरबीआई को दिया गया था। बैंक का कहना है कि समूह की कंपनियों द्वारा शेयरों में निवेश उनका नियमित कारोबारी कार्य है, लेकिन नियामकीय सीमा के कारण पूर्व अनुमति आवश्यक थी।
क्या कहते हैं आरबीआई के नियम
आरबीआई के नियमों के अनुसार, ‘कुल हिस्सेदारी’ में—
- बैंक की अपनी हिस्सेदारी
- उसी नियंत्रण या प्रबंधन वाली कंपनियां
- म्यूचुअल फंड
- ट्रस्टी
- प्रमोटर समूह की कंपनियां
सभी को शामिल किया जाता है। आरबीआई का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी बैंक या उसका समूह किसी अन्य बैंक में अत्यधिक नियंत्रण न हासिल कर सके, जिससे प्रतिस्पर्धा या वित्तीय स्थिरता प्रभावित हो।
एक साल के लिए मिली राहत
आरबीआई की यह मंजूरी एक वर्ष के लिए सीमित है और इसकी वैधता 14 दिसंबर 2026 तक रहेगी। इसके बाद स्थिति की समीक्षा की जाएगी।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस फैसले से बैंकिंग सेक्टर में निवेश गतिविधियां तेज होंगी, हालांकि नियामक की कड़ी निगरानी बनी रहेगी।