
नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन का खतरा तेजी से बढ़ रहा है और इसका सीधा असर भारत पर पड़ रहा है। नई रिपोर्ट के अनुसार, अगर दुनिया का तापमान 2°C तक बढ़ जाता है तो भारत को 2050 तक हर साल लगभग 200 अरब डॉलर (करीब 18.6 लाख करोड़ रुपये) सिर्फ जलवायु सुरक्षा और अनुकूलन उपायों पर खर्च करने होंगे। यह राशि वर्तमान में किए जा रहे खर्च 15 अरब डॉलर (लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये) से कई गुना अधिक है।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत की अधिकांश आबादी अभी भी गर्मी, बाढ़, सूखा और जंगल की आग जैसी आपदाओं से पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। इसके लिए तटीय सुरक्षा, बेहतर कूलिंग और बड़ी जलवायु अनुकूलन पहलों की तत्काल जरूरत है।
वर्तमान खर्च और जरूरत
भारत फिलहाल चरम मौसम से बचाव के लिए केवल 15 अरब डॉलर सालाना खर्च कर रहा है, जो आवश्यकता का केवल 13% है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत पर खर्च का बोझ इसलिए अधिक है क्योंकि बड़ी संख्या में लोग सीधे जलवायु खतरों के संपर्क में हैं। प्रति व्यक्ति अनुकूलन खर्च 125 डॉलर के करीब होगा, जो केंद्र सरकार के 2025 के बजट में तय किए गए प्रति व्यक्ति खर्च का लगभग तीन गुना है।
निजी क्षेत्र और कंपनियों की भूमिका
अनुकूलन खर्चों में लगभग आधा हिस्सा निजी निवेश और कंपनियों द्वारा आएगा। इसमें एयर कंडीशनिंग, बाढ़ सुरक्षा उपाय, फसल सुरक्षा और छाया देने जैसी पहलों का समावेश होगा। सरकार समुद्री तटबंध, शुरुआती चेतावनी प्रणाली और बुनियादी ढांचे पर लगभग 30% खर्च करेगी। शेष 20% खर्च सिंचाई और मिली-जुली जलवायु अनुकूलन पहलों पर आएगा।
जलवायु अनुकूलन का महत्व
जलवायु अनुकूलन का मतलब है कि समाज और अर्थव्यवस्था को बदलते मौसम के अनुरूप ढालना। उदाहरण के लिए, गर्मी से बचाव के लिए अधिक एयर कंडीशनर, बाढ़ से बचने के लिए ऊंचे घर और तटीय सुरक्षा संरचनाओं का निर्माण। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर अभी से तैयारी नहीं की गई तो भविष्य में भारत को भारी आर्थिक और मानवीय कीमत चुकानी पड़ेगी।
निष्कर्ष: जलवायु सुरक्षा सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। हर नागरिक और कंपनियों को इसमें सक्रिय योगदान देना होगा ताकि भारत 2050 तक जलवायु खतरों के प्रभाव से सुरक्षित रह सके।