
नई दिल्ली: प्रेग्नेंसी के दौरान परिवार की छोटी-सी लापरवाही भी माताओं और अजन्मे बच्चों के लिए गंभीर परिणाम ला सकती है। हाल ही में गाइनेकॉलॉजिस्ट डॉ. सोनिया गुप्ता के पास ऐसा मामला आया, जिसने उन्हें भी झकझोर कर रख दिया। मामला एक महिला की तीसरी प्रेग्नेंसी का था, जिसमें ससुराल वालों की चूक ने एक मासूम बच्चे की जान को खतरे में डाल दिया।
नौ महीने तक जांच नहीं करवाई गई
डॉ. सोनिया ने बताया कि महिला की पहली दो बेटियों के जन्म के बाद परिवार तनाव और डर में था कि इस बार भी बेटी न हो जाए। इसी मानसिक दबाव में उन्होंने प्रेग्नेंसी के पूरे नौ महीने तक कोई नियमित जांच नहीं करवाई। महिला की तकलीफों को गंभीरता से नहीं लिया गया और उसे सीधे डिलीवरी के लिए अस्पताल लाया गया।
गर्भ में ही हुआ गंभीर नुकसान
जांच में पता चला कि बच्चा गर्भ में ही पॉटी कर चुका था, जिससे अम्नियोटिक फ्लूड (गंदा पानी) पूरी तरह संक्रमित हो गया था। डिलीवरी के समय बच्चा बहुत धीमी गति से सांस ले रहा था। डॉ. सोनिया ने बताया कि जैसे-तैसे डिलीवरी करवाई गई, लेकिन बच्चे को बचाया नहीं जा सका।
डॉक्टर की चेतावनी
डॉ. सोनिया ने अपील की कि संतान में भेदभाव न करें। बेटे या बेटी का सम्मान समान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि माताओं और अजन्मे बच्चों की सुरक्षा में किसी प्रकार का डर, अंधविश्वास या लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं होनी चाहिए। प्रेग्नेंसी के दौरान नियमित डॉक्टर चेकअप करना अनिवार्य है।
निष्कर्ष:
यह मामला हर परिवार के लिए चेतावनी है कि प्रेग्नेंसी केवल मां की ही जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे परिवार की जागरूकता और देखभाल से सुरक्षित हो सकती है। नियमित चेकअप और सही देखभाल से माताओं और बच्चों की जान बचाई जा सकती है।