
नई दिल्ली। भारतीय मुद्रा बाजार में शुक्रवार को हड़कंप मच गया, जब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। कारोबारी सत्र के दौरान रुपया 90.56 प्रति डॉलर तक फिसला, जो अब तक का रिकॉर्ड इंट्रा-डे लो है। दिन के अंत में यह 17 पैसे की गिरावट के साथ 90.49 पर बंद हुआ। इस गिरावट के पीछे भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में देरी और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली को बड़ी वजह माना जा रहा है।
विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की बिकवाली ने रुपये पर दबाव और बढ़ा दिया है। दिसंबर महीने में अब तक एफपीआई भारतीय बाजारों से 17,955 करोड़ रुपये निकाल चुके हैं। एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार, साल 2025 में कुल निकासी का आंकड़ा 1.61 लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंच चुका है। निवेशकों का यह रुख रुपये की कमजोरी को और गहरा कर रहा है।
डॉलर कमजोर, फिर भी रुपया क्यों टूटा?
दिलचस्प बात यह है कि वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर खुद कमजोर हुआ है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की संभावित ब्याज दर कटौती और कमजोर मैक्रो डेटा के कारण डॉलर इंडेक्स दो महीने के निचले स्तर पर आ गया है। रॉयटर्स के मुताबिक, दिसंबर में डॉलर इंडेक्स करीब 1.1% गिरा है और पूरे साल में इसमें 9% से ज्यादा की गिरावट दर्ज हुई है—जो 2017 के बाद सबसे बड़ी वार्षिक गिरावट है।
इसके बावजूद भारतीय रुपया कमजोर हुआ, जो यह संकेत देता है कि मौजूदा गिरावट वैश्विक कारणों से ज्यादा भारत-विशिष्ट अनिश्चितताओं का नतीजा है।
क्या भारत-अमेरिका डील से बदलेगी तस्वीर?
गुरुवार को भारत और अमेरिका के बीच दो दिन की व्यापार वार्ता पूरी हुई, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) को लेकर विचार-विमर्श हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच फोन पर बातचीत भी हुई, जिससे उम्मीद जगी कि बहुप्रतीक्षित समझौता जल्द अंतिम रूप ले सकता है।
INVAsset PMS के बिजनेस हेड हर्षल दासानी के मुताबिक, बाजारों को टैरिफ में कमी और बेहतर बाजार पहुंच की उम्मीद थी। लेकिन अब तक किसी ठोस घोषणा के अभाव ने निवेशकों की धारणा पर दबाव डाला है। यही वजह है कि कमजोर डॉलर के बावजूद रुपया संभल नहीं पा रहा।
समझौता कमजोर रहा तो क्या होगा?
विशेषज्ञों की चेतावनी है कि अगर व्यापार समझौता उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा या टलता रहा, तो बाजार में अनिश्चितता और बढ़ेगी। एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की करेंसी रिसर्च एनालिस्ट रिया सिंह के अनुसार, कमजोर या अधूरा समझौता विदेशी निवेशकों की निकासी को और तेज कर सकता है। ऐसे में डॉलर-रुपया ऊंचे स्तरों पर बना रह सकता है।
रुपया कहां तक जा सकता है?
मौजूदा हालात को देखते हुए निकट भविष्य में रुपये पर दबाव बना रह सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर कोई ठोस सकारात्मक संकेत नहीं मिला, तो डॉलर-रुपया जोड़ी 90.80 के स्तर को फिर से टेस्ट कर सकती है। आगे चलकर यह 91.50 से 92.00 तक भी जा सकती है।
हालांकि, यदि वैश्विक जोखिम भावना सुधरती है और भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता से कोई बड़ा सकारात्मक संकेत मिलता है, तो रुपया 89.80–89.60 के स्तर तक संभल सकता है।
निष्कर्ष:
इस समय भारतीय रुपये की दिशा काफी हद तक भारत-अमेरिका व्यापार समझौते और विदेशी निवेशकों के भरोसे पर टिकी है। समझौता मजबूत रहा तो राहत की सांस मिल सकती है, लेकिन अगर यह फ्लॉप रहा, तो रुपये के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।