
लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई को रविवार को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलने जा रहा है। राजधानी लखनऊ में प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए नामांकन प्रक्रिया पूरी कराई जा रही है और 14 दिसंबर को औपचारिक रूप से नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा की जाएगी। पार्टी सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी इस दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं। यदि उनके नाम पर मुहर लगती है, तो वे कुर्मी समाज से आने वाले यूपी बीजेपी के चौथे प्रदेश अध्यक्ष होंगे।
प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर यह कवायद ऐसे समय हो रही है, जब पार्टी 2027 के विधानसभा चुनाव की रणनीति में जुटी है। विपक्ष के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण की काट के तौर पर भाजपा एक बार फिर ओबीसी चेहरे को आगे बढ़ाने की तैयारी में दिखाई दे रही है। इसी राजनीतिक गणित के तहत पंकज चौधरी का नाम तेजी से उभरा है।
45 साल का संगठनात्मक इतिहास
भाजपा की स्थापना वर्ष 1980 के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश में कुल 15 नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली है, जबकि दो बार अध्यक्ष बनने के कारण कुल 17 कार्यकाल पूरे हुए हैं। इस पूरे दौर में कलराज मिश्र एकमात्र ऐसे नेता रहे हैं, जिन्हें दो बार प्रदेश अध्यक्ष बनने का अवसर मिला।
1980 से 2017 तक पार्टी संगठन पर ब्राह्मण वर्ग का वर्चस्व रहा। इस अवधि में सबसे अधिक छह ब्राह्मण नेता प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए। हालांकि, पिछले एक दशक में ओबीसी राजनीति ने पार्टी के भीतर मजबूत जगह बनाई और नेतृत्व का संतुलन बदला।
कुर्मी समाज का बढ़ता प्रभाव
अब तक यूपी बीजेपी में कुर्मी समाज से तीन नेता—ओम प्रकाश सिंह, विनय कटियार और स्वतंत्र देव सिंह—प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। तीनों के कार्यकाल में पार्टी को अहम राजनीतिक सफलताएं मिलीं। अब पंकज चौधरी के नाम की चर्चा से यह संभावना जताई जा रही है कि पार्टी एक बार फिर इसी समाज पर भरोसा जता सकती है।
इसके अलावा यूपी बीजेपी को अब तक एक लोधी, एक मौर्य, एक राजपूत, एक भूमिहार और एक जाट समाज से भी प्रदेश अध्यक्ष मिल चुके हैं।
माधो प्रसाद त्रिपाठी से हुई थी शुरुआत
भाजपा की यूपी इकाई के पहले प्रदेश अध्यक्ष माधो प्रसाद त्रिपाठी बने थे। 1980 से 1984 तक उनके नेतृत्व में पार्टी ने प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करनी शुरू की।
कल्याण सिंह और ओबीसी राजनीति की नींव
1984 से 1990 तक लोधी समाज से आने वाले कल्याण सिंह प्रदेश अध्यक्ष रहे। बाद में वे मुख्यमंत्री बने और ओबीसी राजनीति में भाजपा की मजबूत पहचान गढ़ी।
कलराज मिश्र का लंबा दौर
1991 से 1997 तक कलराज मिश्र का कार्यकाल मंडल–कमंडल की राजनीति और अयोध्या आंदोलन के कारण ऐतिहासिक माना जाता है। यही वह दौर था, जिसने यूपी की राजनीति की दिशा बदल दी।
राजनाथ सिंह से केशव मौर्य तक
राजनाथ सिंह, ओम प्रकाश सिंह, विनय कटियार, केशरीनाथ त्रिपाठी, रमापति राम त्रिपाठी, सूर्य प्रताप शाही और लक्ष्मीकांत वाजपेई जैसे नेताओं ने अलग-अलग दौर में संगठन को संभाला। लक्ष्मीकांत वाजपेई के नेतृत्व में 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यूपी में ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
हालिया नेतृत्व और चुनौतियां
2016–17 में केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में भाजपा ने 2017 विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल किया। इसके बाद महेंद्र नाथ पांडेय और स्वतंत्र देव सिंह के कार्यकाल में 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनावों में पार्टी सत्ता में बनी रही।
2022 में जाट समाज से आने वाले भूपेंद्र चौधरी प्रदेश अध्यक्ष बने, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को यूपी में बड़ा झटका लगा और भाजपा 33 सीटों पर सिमट गई।
अब, नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन के साथ भाजपा एक बार फिर संगठन को मजबूत कर 2027 की चुनावी तैयारी को धार देने की कोशिश में है। पंकज चौधरी के नाम पर मुहर लगती है या नहीं, इस पर पूरे प्रदेश की सियासी नजरें टिकी हुई हैं।