
जयपुर। राजस्थान में चर्चित 2 करोड़ रुपये रिश्वत कांड में फंसी राजस्थान पुलिस सेवा (RPS) की अधिकारी दिव्या मित्तल को राज्य सरकार से बड़ी राहत मिली है। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 17A के तहत अभियोजन स्वीकृति नहीं दिए जाने के कारण सरकार ने उनके खिलाफ केस चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की कार्रवाई को बड़ा झटका लगा है और दिव्या मित्तल को व्यावहारिक तौर पर क्लीन चिट मिल गई है।
तीन साल पहले, एसओजी अजमेर चौकी में तैनात रहते हुए तत्कालीन एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल पर 2 करोड़ रुपये रिश्वत मांगने के गंभीर आरोप लगे थे। एसीबी ने उन्हें गिरफ्तार किया था और दावा किया था कि उनके पास रिश्वत मांगने से जुड़े ऑडियो सबूत मौजूद हैं। इन ऑडियो क्लिप्स को जांच के लिए फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) भेजा गया था।
सरकारी अनुमति के बिना कार्रवाई पर सवाल
सूत्रों के अनुसार, किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई से पहले धारा 17A के तहत सक्षम प्राधिकारी की अनुमति आवश्यक होती है। बताया जा रहा है कि दिव्या मित्तल के मामले में एसीबी ने कार्मिक विभाग से पूर्व स्वीकृति नहीं ली थी। इसी तकनीकी आधार पर राज्य सरकार ने अभियोजन की मंजूरी देने से इनकार कर दिया। नतीजतन मामला कोर्ट तक पहुंचने से पहले ही कमजोर पड़ गया।
वॉइस सैंपल नहीं, तो मिलान कैसे?
एसीबी के पास मौजूद ऑडियो क्लिप्स की पुष्टि के लिए दिव्या मित्तल को वॉइस सैंपल देने के लिए नोटिस जारी किया गया था, लेकिन उन्होंने सैंपल देने से इनकार कर दिया। वॉइस सैंपल न मिलने के कारण ऑडियो मिलान संभव नहीं हो सका, जिससे जांच की कड़ी कमजोर होती चली गई।
आय से अधिक संपत्ति का मामला भी चर्चा में
रिश्वत कांड के अलावा दिव्या मित्तल के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला भी दर्ज किया गया था। उदयपुर में बनाए गए एक आलीशान रिसोर्ट को एसीबी ने अवैध निर्माण बताते हुए बुलडोजर से ध्वस्त किया था। आरोप था कि यह संपत्ति अवैध रूप से अर्जित धन से बनाई गई थी।
हालांकि, अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने के बाद अब पूरे मामले की दिशा बदल गई है। सरकार के इस फैसले को लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में चर्चा तेज है। जहां एक ओर इसे कानूनी प्रक्रिया का पालन बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई को कमजोर करने वाला कदम बता रहा है।