
पटना: बिहार के फूड प्रोसेसिंग सेक्टर को लेकर संसद में जोरदार बहस देखने को मिली। आरजेडी के राज्यसभा सांसद संजय यादव ने सवाल उठाया कि राज्य में फूड प्रोसेसिंग सुविधाओं की कमी के कारण बिहार के किसानों और राज्य को लगभग 4500 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।
संजय यादव ने कहा कि पपीते का 30–50 प्रतिशत उत्पादन, केला उत्पादन का 25 प्रतिशत और 65 लाख टन दूध के बावजूद केवल 12–13 प्रतिशत ही प्रोसेस होता है। उन्होंने यह भी बताया कि बिहार में लगभग 120 कोल्ड स्टोरेज बंद पड़े हैं। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या केंद्र सरकार बिहार में फूड प्रोसेसिंग ढांचे को मजबूत करने और नई यूनिट स्थापित करने पर विचार कर रही है।
इसके जवाब में चिराग पासवान ने कहा कि प्रधानमंत्री सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम फूड प्रोसेसिंग (PMFME) योजना का सबसे अधिक लाभ बिहार को मिला है। योजना के तहत छोटे उद्यमियों और कृषि क्षेत्र के गरीब परिवारों को व्यवसाय स्थापित करने का अवसर दिया जा रहा है। साथ ही, उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ने का प्रयास भी किया जा रहा है।
चिराग ने बताया कि बिहार में कैपेसिटी बिल्डिंग सेंटर और देश के तीसरे NIFTEM (राष्ट्रीय फूड टेक्नोलॉजी संस्थान) का निर्माण भी किया जा रहा है। मखाना बोर्ड पर भी काम चल रहा है, ताकि राज्य के उत्पादकों को कोई नुकसान न हो और उनके छोटे उद्योग मजबूत बनें।
संसद में इस बहस के दौरान चिराग और संजय यादव के बीच हल्की तीखी नोक-झोंक भी देखने को मिली, लेकिन दोनों पक्षों ने फूड प्रोसेसिंग और बिहार के किसानों के हित पर अपने दृष्टिकोण स्पष्ट किए।