Saturday, December 13

‘भारत के लिए जीने का समय है, मरने का नहीं’ — देश को तोड़ने वाली भाषा पर मोहन भागवत की कड़ी चेतावनी

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने देश में बढ़ती विभाजनकारी सोच पर तीखा प्रहार करते हुए कहा है कि भारत के लिए अब जीने का समय है, न कि मरने का। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि देश में ऐसी भाषा का कोई स्थान नहीं है जो भारत को तोड़ने की बात करे, जैसे— ‘तेरे टुकड़े होंगे’

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यह विचार मोहन भागवत ने स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर के गीत ‘सागर प्राण तलमाला’ की 115वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।

राष्ट्र सर्वोपरि, विभाजनकारी सोच अस्वीकार्य
भागवत ने सावरकर की देशभक्ति को स्मरण करते हुए कहा कि भारत में केवल अपने राष्ट्र की भक्ति होनी चाहिए। जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर समाज को बांटने वाली सोच को उन्होंने राष्ट्र निर्माण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बताया। उन्होंने कहा कि सावरकर ने कभी स्वयं को किसी जाति या प्रांत तक सीमित नहीं रखा, बल्कि हमेशा एक राष्ट्र की अवधारणा को आगे बढ़ाया।

छोटे मुद्दों पर टकराव से महान राष्ट्र नहीं बनता
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आज छोटे-छोटे मुद्दों पर होने वाले टकराव हमारी सोच की संकीर्णता को दर्शाते हैं। यदि भारत को एक महान राष्ट्र बनाना है, तो सावरकर के विचारों को समझकर उन्हें जन-जन तक पहुंचाना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि हम सब भारत हैं और राष्ट्र को हर प्रकार के आंतरिक टकराव से ऊपर रखना होगा।

स्वार्थ त्याग से ही बनेगा ‘विश्व गुरु’ भारत
अपने संबोधन में भागवत ने रामसेतु निर्माण की कथा का उदाहरण देते हुए छोटी गिलहरी के योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्र निर्माण में हर व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण होता है। स्वार्थ को त्यागकर, नि:स्वार्थ भाव से देश के लिए कार्य करने से ही सावरकर के सपनों का भारत साकार होगा। उन्होंने कहा कि जब हर नागरिक राष्ट्र को सर्वोपरि मानेगा, तभी भारत पुनः ‘विश्व गुरु’ की भूमिका निभा सकेगा।

मोहन भागवत के इस संदेश को वर्तमान समय में राष्ट्र की एकता, अखंडता और सकारात्मक राष्ट्रवाद की दिशा में एक सशक्त आह्वान के रूप में देखा जा रहा है।

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