
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अनुकंपा के आधार पर दी जाने वाली नियुक्तियों को लेकर स्थिति पूरी तरह स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल राहत देने की एक मानवीय व्यवस्था है, न कि उच्च पद या पदोन्नति का अधिकार। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि केवल पात्रता के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के जरिए ऊंचे पद का दावा नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने अपने अहम फैसले में कहा कि अनुकंपा पर की गई नियुक्तियां असाधारण परिस्थितियों में सामान्य भर्ती नियमों के अपवाद के रूप में दी जाती हैं। इनका उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को आर्थिक सहारा देना होता है, न कि इसे वरिष्ठता या पदोन्नति हासिल करने की सीढ़ी बनाना।
उच्च पद की मांग स्वीकार्य नहीं
पीठ ने स्पष्ट किया कि मृतक कर्मचारी का आश्रित, भले ही वह उच्च पद के लिए शैक्षणिक या तकनीकी रूप से पात्र हो, अनुकंपा के आधार पर किसी भी मनचाहे पद पर नियुक्ति का हकदार नहीं है। अदालत ने कहा कि मात्र पात्रता, उच्च पद पर नियुक्ति के दावे को वैध ठहराने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हो सकती।
यह टिप्पणी तमिलनाडु प्रशासन की ओर से दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की गई। इन मामलों में मद्रास उच्च न्यायालय ने पहले सफाईकर्मी के रूप में कार्यरत दो व्यक्तियों को अनुकंपा के आधार पर कनिष्ठ सहायक पद पर पदोन्नत करने का निर्देश दिया था।
हाईकोर्ट का आदेश रद्द
शीर्ष अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि प्रतिवादी मृतक कर्मचारियों के वारिस थे, जिन्हें उनके पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर पहले ही नौकरी दी जा चुकी थी। अदालत ने कहा कि यह नियुक्ति अपने आप में अनुकंपा नियुक्ति के वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति के लिए पर्याप्त थी।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी अन्य समान स्थिति वाले व्यक्ति को यदि पूर्व में उच्च पद का लाभ दिया गया हो, तो उसके आधार पर सभी को ऐसा अधिकार नहीं मिल जाता। अदालत ने सक्षम प्राधिकार के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें निचले पद पर नियुक्ति के बाद उच्च पद की मांग को खारिज कर दिया गया था।
इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य केवल संकट में फंसे परिवार को सहारा देना है, न कि इसे अधिकार या पदोन्नति का माध्यम बनाना।