
भोपाल।
मध्य प्रदेश में डॉ. मोहन यादव सरकार को सत्ता संभाले दो साल पूरे हो चुके हैं। 13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले मोहन यादव ने शुरुआती दिनों में ही तेज और सख्त फैसलों से यह संकेत दे दिया था कि उनकी सरकार ‘फैसले लेने में देरी’ के मूड में नहीं है। हालांकि दो साल के इस सफर में जहां निवेश, नक्सल नियंत्रण और प्रशासनिक सख्ती जैसे मुद्दों पर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, वहीं कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के आरोप और मुख्यमंत्री के विवादास्पद बयान सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियां बनकर उभरे हैं।
मुख्यमंत्री बनते ही 48 घंटे में तीन ताबड़तोड़ फैसले
शपथ ग्रहण के महज 48 घंटे के भीतर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने तीन ऐसे फैसले लिए, जिनसे राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मच गई।
धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के उपयोग पर नियंत्रण, खुले में मांस और अंडे की बिक्री पर सख्ती, और अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई—इन फैसलों को सरकार ने ‘कानून-व्यवस्था और सामाजिक अनुशासन’ से जोड़ा।
ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए फ्लाइंग स्क्वॉड गठित की गई और धार्मिक स्थलों पर शोर की साप्ताहिक समीक्षा शुरू की गई। समर्थकों ने इसे सख्त प्रशासन का संकेत बताया, जबकि विपक्ष ने इसे ‘दिखावटी कार्रवाई’ करार दिया।
महिलाओं और आदिवासियों के खिलाफ अपराध चिंता का विषय
सरकार के दावों के बावजूद महिलाओं और आदिवासियों के खिलाफ अपराध राज्य की सबसे गंभीर समस्या बने हुए हैं।
एनसीआरबी 2023 के आंकड़ों के अनुसार, आदिवासियों के खिलाफ अपराधों में मध्य प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर रहा, जहां 2,858 मामले दर्ज हुए।
धार, झाबुआ और खरगोन जैसे आदिवासी बहुल जिलों में हालात ज्यादा चिंताजनक हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराधों में भी प्रदेश शीर्ष राज्यों में शामिल है। विपक्षी कांग्रेस का आरोप है कि ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावे जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाते।
बेरोजगारी बनाम निवेश का गणित
मोहन सरकार ने 2025 को ‘उद्योग वर्ष’ घोषित कर लगभग ₹8 से ₹8.57 लाख करोड़ के निवेश और 23 लाख रोजगार सृजन का दावा किया है। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट और क्षेत्रीय कॉन्क्लेव में बड़े प्रस्ताव भी आए।
लेकिन रोजगार के मोर्चे पर तस्वीर उतनी उजली नहीं दिखती। विशेषज्ञ इसे ‘जॉबलेस ग्रोथ’ बता रहे हैं। युवा और ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी अब भी गंभीर समस्या है। कांग्रेस ने सरकार पर राज्य को कर्ज और बेरोजगारी के दलदल में धकेलने का आरोप लगाया है।
मुख्यमंत्री के बयान बने सबसे बड़ा विवाद
दो साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री की तीखी और विवादास्पद भाषा लगातार सुर्खियों में रही।
नवंबर 2025 में एक सरपंच सम्मेलन में पंचायत सचिवों को लेकर दिया गया बयान—“साले को हटा देंगे, इनकी क्या औकात”—राजनीतिक विवाद का कारण बना।
इससे पहले दिव्यांगों पर की गई टिप्पणी को भी असंवेदनशील बताया गया। कांग्रेस ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और ग्राम स्वराज की भावना के खिलाफ बताते हुए माफी की मांग की। सरकार का तर्क है कि यह ‘त्वरित डिलीवरी’ की शैली है, लेकिन आलोचकों का मानना है कि इससे प्रशासनिक तंत्र का मनोबल गिरता है।
जल जीवन मिशन और बढ़ता कर्ज
जल जीवन मिशन में कथित अनियमितताओं और मंत्री का नाम सामने आने से सरकार की पारदर्शिता पर सवाल उठे। हालांकि सरकार ने जांच के आदेश दिए और शिकायत को आधारहीन बताया, लेकिन विपक्ष ने इसे ‘आंतरिक कलह’ का संकेत कहा।
वहीं राज्य पर ₹4.75 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज भी सरकार के सामने बड़ी चुनौती है।
निष्कर्ष
दो साल के कार्यकाल में मोहन सरकार ने नक्सल नियंत्रण और निवेश के मोर्चे पर कुछ सकारात्मक संकेत जरूर दिए हैं, लेकिन कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी, सामाजिक न्याय और मुख्यमंत्री की बयानबाजी जैसी चुनौतियां अब भी बरकरार हैं।
सरकार की असली परीक्षा अब इस बात की होगी कि वह केवल त्वरित फैसलों और प्रतीकात्मक कार्रवाइयों से आगे बढ़कर संरचनात्मक सुधार और जनता से संवाद के जरिए भरोसा कायम कर पाती है या नहीं। विपक्ष की आलोचना और जनता की उम्मीदें—दोनों ही मोहन सरकार के अगले वर्षों की दिशा तय करेंगी।