
नई दिल्ली: भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने प्रलय टैक्टिकल क्वाज़ी-बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम को अब पूरी तरह स्वदेशी जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (INDIGIS) से लैस कर दिया है। यह प्रणाली न सिर्फ हार्डवेयर और गाइडेंस के स्तर पर, बल्कि डिजिटल मिशन-प्लानिंग में भी पूरी तरह भारतीय तकनीक पर निर्भर होगी। इसे रणनीतिक स्वावलंबन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
युद्ध-क्षेत्र में सटीक डेटा और सुरक्षा:
INDIGIS के जुड़ने से मिसाइल बैटरी कमांडर अब सुरक्षित और ऑफलाइन डिजिटल मैपिंग सिस्टम का इस्तेमाल कर सकेंगे। इस सिस्टम पर लॉन्चर की स्थिति, मिसाइल का प्रकार, लक्ष्य फोल्डर, रेंज रिंग्स और युद्ध-क्षेत्र संबंधी अन्य महत्वपूर्ण डेटा सटीक रूप से देखा और एनालिसिस किया जा सकेगा। इससे किसी भी विदेशी सॉफ्टवेयर पर निर्भरता समाप्त हो गई है, और डेटा लीक या बैकडोर जैसी समस्याओं का जोखिम कम हुआ है।
दुश्मन के ठिकानों को तबाह करने की क्षमता:
प्रलय मिसाइल 150 से 500 किलोमीटर तक की दूरी पर लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है। इसकी क्वाज़ी-बैलिस्टिक उड़ान पथ इसे मार्ग में दिशा बदलने और दुश्मन के अवरोधन प्रयासों को विफल करने की शक्ति देता है। इसे मोबाइल लॉन्चर्स से दागा जाता है, जो लगातार अपनी स्थिति बदलते रहते हैं। इस ‘शूट-एंड-स्कूट’ रणनीति के तहत कमांडरों को प्रत्येक लॉन्चर की लोकेशन, अलग-अलग वारहेड रेंज, टेरेन मास्किंग और फायरिंग के बाद सुरक्षित मार्ग का विश्लेषण करने में मदद मिलती है।
स्वदेशी तकनीक का स्ट्रैटेजिक ट्राइफेक्टा:
अब प्रलय मिसाइल में शामिल होने वाले INDIGIS सिस्टम के साथ भारत ने हासिल किया है:
- पूरी तरह देश में बनी क्वाज़ी-बैलिस्टिक मिसाइल,
- पूरी तरह स्वदेशी गाइडेंस और सीकर प्रणाली,
- पूरी तरह स्वदेशी डिजिटल GIS-आधारित मिशन-प्लानिंग सिस्टम।
यह उपलब्धि भारतीय रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता और रणनीतिक मजबूती का शक्तिशाली संदेश देती है।