
भोपाल: कभी मौत के मुंह तक जा पहुंचे अंधे तेंदुए ‘इंदर’ की कहानी उम्मीद, संघर्ष और साहस का असाधारण उदाहरण बन गई है। सिर में 35–40 छर्रे, आंखों की पूरी रोशनी खो देना, गहरा डिप्रेशन—इन सबके बाद भी इंदर ने न केवल जिंदगी से जंग जीती, बल्कि भोपाल के वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में नई शुरुआत भी की है। आज वह अपने पूरे बाड़े का नक्शा सूंघकर याद कर चुका है, ऊंचाई पर बैठता है, आवाजें पहचानता है और पूरी तरह सक्रिय जीवन जी रहा है।
नयापुरा से वन विहार तक—एक दर्दनाक सफर
इंदर को इंदौर के नयापुरा (कक्ष 222) क्षेत्र में अत्यंत गंभीर हालत में पाया गया था।
सिर में धंसे 35–40 छर्रों से लगातार खून बह रहा था।
दोनों आंखों की रोशनी पूरी तरह खत्म हो चुकी थी।
21 सितंबर 2020 को भोपाल लाए जाने पर सीटी स्कैन में पता चला कि छर्रे दिमाग के नाजुक हिस्सों के बेहद पास हैं।
डॉक्टरों ने ऑपरेशन को जोखिमभरा बताया।
यह भी सामने आया कि इंदर गहरे डिप्रेशन में था और जीवन बेहद क्षीण हो चुका था।
विशेषज्ञों को भी उसके बचने की उम्मीद बेहद कम थी।
कुछ दिन आइसोलेट—डिप्रेशन से बाहर लाने के अनोखे प्रयास
तत्कालीन डायरेक्टर कमलिका महोलता और वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. अतुल गुप्ता ने उसे क्वारंटाइन में रखा।
लक्ष्य था—इंदर को शारीरिक दर्द और मानसिक तनाव दोनों से निकालना।
इसके लिए टीम ने अनोखे प्रयोग किए—
- उसे मधुर संगीत सुनाया गया
- खाने को अलग-अलग जगह रखकर उसकी सूंघने की क्षमता सक्रिय की गई
- मानव उपस्थिति कम की गई, ताकि तनाव न बढ़े
- उसे धीरे-धीरे व्यवहारिक गतिविधियों से परिचित कराया गया
शुरुआत में इंदर कोने में दुबककर बैठा रहता, खाना नहीं खाता था और हर आवाज से डर जाता था।
लेकिन टीम ने हार नहीं मानी।
नई चुनौती—अंधे इंदर को ‘घर का नक्शा’ महसूस कराना
जब उसकी मानसिक स्थिति संभली, तो उसे बड़े बाड़े में शिफ्ट किया गया।
यहां शर्मानंद गेरे और दिलीप बाथम उसकी नियमित देखभाल में जुटे।
सबसे बड़ी चुनौती थी—उसे नया घर महसूस कराना।
इसके लिए—
- रोज़ नए स्थानों पर खाना रखा जाता
- ऊंचाई पर भोजन रखा जाता, ताकि उसकी प्राकृतिक प्रवृत्ति बनी रहे
- बाड़े के रास्ते खुले रखे गए
- हर दिन उसकी सूंघने की क्षमता को निर्देशित किया गया
केवल दो महीनों में इंदर ने पूरा बाड़ा पहचान लिया।
आज—फिर से सक्रिय, फिर से मजबूत
6 महीने की मेहनत, उपचार और देखभाल के बाद
इंदर आज पूरी तरह अपने माहौल में ढल चुका है।
- वह आवाजें पहचान लेता है
- ऊंचाई पर बैठना पसंद करता है
- बाड़े में आत्मविश्वास से घूमता है
- बिना आंखों की रोशनी के भी हर रास्ता पहचानता है
इंदर की यह कहानी न सिर्फ वन्यजीव संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाती है कि जीवन में जिजीविषा हो तो सबसे कठिन परिस्थितियाँ भी मात खाई जा सकती हैं।
