
पटना: बिहार की खेल एवं आईटी मंत्री और जमुई विधायक श्रेयसी सिंह ने अपनी शादी को लेकर चल रही अटकलों पर विराम लगा दिया। हाल ही में एक यूट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में श्रेयसी सिंह ने न केवल अपनी पर्सनल लाइफ पर बात की, बल्कि बिहार के खेल भविष्य, महिला सशक्तिकरण और अपने संघर्षपूर्ण राजनीतिक-स्पोर्ट्स सफर के बारे में भी खुलकर साझा किया।
शादी पर क्या बोलीं मंत्री?
जब उनसे शादी की योजना के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “आई एम जस्ट वेटिंग फॉर द राइट मैन टू कम अलोंग”. यानी वह सही जीवनसाथी का इंतजार कर रही हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि फिलहाल उनका पूरा ध्यान जमुई की जनता और बिहार के दो महत्वपूर्ण विभागों—खेल और आईटी—की जिम्मेदारियों पर है।
खेल और संघर्ष का सफर
श्रेयसी सिंह ने अपने पिता के सपनों और अपने संघर्ष की कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि 2010 के दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स से ठीक पहले उनके पिता का निधन हो गया था। उनके पिता का सपना था कि वह पदक जीतें। शुरुआती असफलता के बावजूद, श्रेयसी ने लगातार मेहनत की और अगले चार वर्षों में राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतकर बिहार का नाम रोशन किया। बाद में उन्होंने अपने रजत को स्वर्ण पदक में बदलकर इतिहास रचा।
खेल और शिक्षा में नया नारा
पुरानी कहावत “पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे सहवाग” को श्रेयसी ने खारिज करते हुए बिहार में खेलों को बढ़ावा देने के नए नारे दिए। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश में ‘खेल क्रांति’ आई है। उत्तराखंड नेशनल गेम्स में बिहार ने 11 मेडल जीते, जबकि पहले कोई मेडल नहीं मिला था। बिहार की ‘मेडल लाओ, नौकरी पाओ’ योजना के तहत अब तक 150 से अधिक खिलाड़ियों को लाभ मिल चुका है।
श्रेयसी सिंह की यह सच्चाई और संघर्ष की कहानी साबित करती है कि व्यक्तिगत सफलता और सार्वजनिक सेवा को साथ लेकर चलना भी संभव है।