Tuesday, December 23

अरावली का शेर: राजस्थान का वीर, महाराणा प्रताप

 

This slideshow requires JavaScript.

 

जयपुर। राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में महाराणा प्रताप को ‘अरावली का शेर’ कहा जाता है। उनकी वीरता और साहस का प्रतीक बना यह नाम उनकी रणनीति और मातृभूमि के प्रति अडिग निष्ठा से जुड़ा है। अरावली पर्वत की भौगोलिक स्थिति ने महाराणा को मुगल सेनाओं के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में अद्भुत लाभ दिया। यहाँ के हर रास्ते और गुफा की जानकारी ने उन्हें और उनकी सेना को अप्रत्याशित हमले करने और सुरक्षित पीछे हटने में मदद की।

 

‘अरावली का शेर’ नाटक, जो राजस्थान सरकार की आर्थिक सहायता से प्रकाशित हुआ, महाराणा प्रताप की वीरता और उनकी सेना के साहस को जीवंत करता है। यह नाटक आज भी बिहार के गांव-गांव में दशहरे के अवसर पर मंचित किया जाता है। नाटक में एक उल्लेखनीय दृश्य है, जब अकबर के दरबार में महाराणा प्रताप के सरदार विजय सिंह अपनी पगड़ी के सम्मान में मुग़ल सम्राट के सामने सिर नहीं झुकाते। उनका यह साहस दर्शकों के दिलों में आज भी गूँजता है।

 

नाटक के लेखक डॉ. चतुर्भुज, जिन्होंने रेडियो और रंगमंच के लिए लगभग सौ नाटक लिखे, ने महाराणा प्रताप के जीवन और साहस को अत्यंत जीवंत तरीके से प्रस्तुत किया। उनकी लेखनी ने ‘अरावली का शेर’ को केवल ऐतिहासिक दस्तावेज़ ही नहीं बल्कि भावनात्मक अनुभव भी बना दिया।

 

यह नाटक और पुस्तक दोनों ही राजस्थान और बिहार के पाठकों के लिए गौरव का प्रतीक हैं। महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा और वीरता आज भी नई पीढ़ी को प्रेरित करती है, और अरावली पर्वत उनकी अनमोल धरोहर के रूप में हमेशा याद रहेगा।

 

 

Leave a Reply