
बिहार चुनाव के अंतिम चरण में छोटी पार्टियों की अग्निपरीक्षा — दिखी ताकत, अब नतीजों में कितना असर होगा?
एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए सहयोगी दल बने ‘निर्णायक फैक्टर’ — सीमांचल में ओवैसी और मगध में दलित समीकरण पर सबकी नजरें
पटना (संवाददाता): बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। इस चरण में एनडीए (NDA) और महागठबंधन (Grand Alliance) — दोनों गठबंधनों के सामने एक बड़ी चुनौती है: अपने गढ़ों को बचाना और नए इलाकों में पैठ बनाना।
लेकिन इस बार असली परीक्षा बड़ी पार्टियों से ज्यादा, उनके छोटे सहयोगी दलों की है, जिन्होंने टिकट बंटवारे के समय तो अपनी राजनीतिक ताकत दिखा दी थी, मगर अब देखना यह है कि क्या वे मतदान के नतीजों में भी उतना ही प्रभाव दिखा पाएंगे।
🔹 एनडीए के सहयोगियों पर बड़ी जिम्मेदारी
एनडीए के लिए चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 28 सीटों पर मैदान में है (एक उम्मीदवार का नामांकन खारिज हुआ)।
वहीं जीतन राम मांझी की हम (सेक्युलर) सभी 6 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा (RLM) के लिए भी यह चुनाव साख का है, क्योंकि उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा सहित पार्टी के उम्मीदवार 6 में से 4 सीटों पर मुकाबले में हैं।
मगध क्षेत्र में इस बार एनडीए का विशेष फोकस है। 2020 में यहां की 26 सीटों में से 20 सीटें आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के खाते में गई थीं। इस बार बीजेपी-जेडीयू गठबंधन इस क्षेत्र में अपने ‘भाग्य बदलने’ की रणनीति पर काम कर रहा है।
चिराग पासवान की साख भी दांव पर है।
लोजपा (रामविलास) को 28 सीटें मिलने के बावजूद एनडीए में असंतोष के स्वर सुनाई दिए थे। चिराग पासवान ने अपनी राजनीतिक ताकत का जिक्र करते हुए बार-बार लोकसभा चुनावों में 100% स्ट्राइक रेट का हवाला दिया था। अब यह चुनाव उनके नेतृत्व और जनाधार की वास्तविक परीक्षा साबित होगा।
🔹 महागठबंधन की उम्मीदें — कांग्रेस और VIP पर टिकी निगाहें
महागठबंधन के लिए इस चरण में कांग्रेस 37 सीटों पर और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली VIP को गठबंधन निषाद वोट बैंक (2.6%) को अपने पाले में लाने के लिए अहम मानता है।
गौरतलब है कि 2020 में मुकेश सहनी एनडीए में थे, लेकिन इस बार महागठबंधन ने उन्हें उपमुख्यमंत्री पद का वादा कर अपने साथ जोड़ा है। अब देखना है कि यह रणनीति कितना असर दिखा पाती है।
यहां असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM मैदान में है। 2020 में पार्टी ने इस इलाके की 24 में से 5 सीटें जीतकर महागठबंधन को बड़ा झटका दिया था।
इस बार कांग्रेस 12 और आरजेडी 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
एनडीए को उम्मीद है कि AIMIM यदि मुस्लिम वोटों का बंटवारा करने में सफल रही, तो उन्हें हिंदू वोटों के एकीकरण से लाभ मिलेगा।
वहीं महागठबंधन का दावा है कि मुस्लिम वोटर अब एकजुट होकर उनके साथ हैं।
🔹 प्रशांत किशोर का ‘जन सुराज’ बना तीसरा मोर्चा
राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी राज्य में तीसरा मोर्चा बनने की कोशिश में है।
उन्होंने पूरे बिहार में “जनता के बीच से राजनीति” का नारा देकर जोरदार अभियान चलाया है।
पहले चरण में 65% से अधिक रिकॉर्ड मतदान दर्ज होने के बाद यह माना जा रहा है कि मतदाताओं में इस बार परिवर्तन की लहर है, हालांकि इसका लाभ किसे मिलेगा, यह कहना अभी कठिन है।
🔹 सीटों का समीकरण
पहले चरण में
- जेडीयू ने 57 सीटों पर
- बीजेपी ने 48 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
दूसरे चरण में
- बीजेपी 53
- जेडीयू 44 सीटों पर मैदान में है।
महागठबंधन की ओर से
- आरजेडी 71
- सीपीआई (एमएल) 6 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
कुछ सीटों पर घटक दलों के बीच “दोस्ताना मुकाबला” भी देखने को मिल रहा है, जिससे परिणाम और भी दिलचस्प हो सकते हैं।
🔹 निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव का अंतिम चरण छोटी पार्टियों के भविष्य और बड़ी पार्टियों की रणनीति दोनों के लिए अहम साबित होगा।
सीमांचल से लेकर मगध और तिरहुत तक दलित, मुस्लिम और पिछड़ा वोट बैंक ही तय करेगा कि कौन-सा गठबंधन सत्ता की कुर्सी के करीब पहुंचेगा।