कोलकाता। पश्चिम बंगाल की राजनीति इन दिनों अजीब उलझन में है। वजह—तृणमूल कांग्रेस के दो विधायक जिनका नाम एक ही है: हुमायूं कबीर। दोनों अलग-अलग क्षेत्रों से विधायक हैं, लेकिन एक की पहल का असर सीधा दूसरे पर पड़ रहा है।
मुर्शिदाबाद के भरतपुर से विधायक रहे हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को बेल्डांगा में कथित बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का शिलान्यास किया और देशभर के मुसलमानों से चंदा देने की अपील करते हुए एक QR कोड भी जारी किया। इस अपील का असर तेज़ी से फैला और कई राज्यों से दानदाताओं ने संपर्क शुरू किया। लेकिन गड़बड़ यहीं हुई—अधिकांश लोग चंदा देने से पहले बात करने के लिए गलत विधायक को फोन करने लगे।
IPS से राजनीति में आए डेबरा विधायक के फोन की घंटी नहीं थम रही
पश्चिम मेदिनीपुर के डेबरा से TMC विधायक हुमायूं कबीर, जो कि पूर्व IPS अधिकारी हैं, अचानक अनगिनत फोन कॉल से परेशान हो उठे। लोग उन्हें उसी हुमायूं कबीर समझ बैठे, जिन्होंने मस्जिद के लिए QR कोड जारी किया था। डेबरा विधायक के मुताबिक अब तक करीब 200 फोन कॉल उन्हें केवल इस भ्रम में मिल चुके हैं।
कॉल बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, मुंबई ही नहीं, विदेशों से भी आए—सबका एक ही सवाल: “मस्जिद के लिए दान देना है, QR कोड भेजिए।”
डेबरा विधायक बार-बार यह स्पष्ट कर रहे हैं कि वह “मस्जिद शिलान्यास” वाले हुमायूं कबीर नहीं हैं। उन्होंने तो यहां तक कहना पड़ा कि जिन हुमायूं कबीर की लोग तलाश कर रहे हैं, उन्हें पार्टी ने हाल ही में निलंबित भी कर दिया है।
नाम का चक्कर और राजनीति में नई चर्चा
दोनों नेताओं के नाम एक जैसे होने के कारण पश्चिम बंगाल के राजनीतिक गलियारों में लगातार चर्चा बनी हुई है। भरतपुर वाले हुमायूं कबीर—जो कांग्रेस छोड़कर TMC में आए थे—की पहल से जहां ध्रुवीकरण की राजनीति गर्म है, वहीं डेबरा विधायक अनचाहे ही चर्चा के केंद्र में आ गए हैं।
“मंदिर-मस्जिद राजनीतिक अखाड़े नहीं”—डेबरा विधायक की अपील
लगातार बढ़ती अफरा-तफरी के बीच डेबरा विधायक ने सोशल मीडिया पर भी पोस्ट लिखकर नागरिकों से अपील की कि मंदिर और मस्जिद को राजनीति का मैदान न बनाया जाए। उन्होंने कहा कि वे स्थिति से नाराज़ नहीं हैं, बल्कि लोगों को सही जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं।
