Friday, December 5

बिहार में 5 लाख डुप्लीकेट वोटर का मामला गरमाया, ADR के आरोप पर सुप्रीम कोर्ट सख्त — चुनाव आयोग से कहा, “दस्तावेज तैयार रखें”

नई दिल्ली: बिहार की वोटर लिस्ट में गड़बड़ी को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया बिहार में 5 लाख से अधिक डुप्लीकेट वोटरों को हटाने में विफल रही। इस गंभीर आरोप के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दो टूक कहा है कि वह सभी दस्तावेज तैयार रखकर ही अगली सुनवाई में पेश हो।

ADR का बड़ा दावा: “SIR फेल, 5 लाख डुप्लीकेट वोटर अब भी मौजूद”

एनजीओ की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के सामने कहा कि
अक्टूबर में योगेंद्र यादव द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए प्रेजेंटेशन में जिन डुप्लीकेट नामों का खुलासा किया गया था, वे फाइनल वोटर लिस्ट में अब भी मौजूद हैं, जबकि SIR प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।

उन्होंने कोर्ट को बताया:

  • चुनाव आयोग के पास डुप्लीकेशन हटाने वाला विशेष सॉफ्टवेयर मौजूद है
  • लेकिन चुनाव आयोग इसे वोटर लिस्ट पर लागू करने को तैयार नहीं
  • यदि सॉफ्टवेयर चलाया जाए, तो 5 लाख नाम तुरंत हट सकते हैं

पारदर्शिता पर सवाल

प्रशांत भूषण ने SIR प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा:

  • पूरे अभियान में पारदर्शिता की भारी कमी
  • चुनाव आयोग ने यह नहीं बताया कि किस आधार पर नाम जोड़े या हटाए गए
  • SIR की पूरी प्रक्रिया “अस्पष्ट और अधूरी” रही

उनकी दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से साफ कहा—
“तथ्यों का जवाब देना होगा, अपने रिकॉर्ड तैयार रखें।”

ECI की सफाई, सुप्रीम कोर्ट की सख्ती

चुनाव आयोग की ओर से वकील एकलव्य द्विवेदी ने कहा कि आयोग ने एक एफिडेविट दाखिल कर दिया है और सभी नियमों का पालन किया गया है।
लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि:

  • ECI को यह साबित करना होगा कि उसने
    अपने ही बनाए नियमों का सही पालन किया
  • SIR की हर प्रक्रिया नियमों के दायरे में होनी चाहिए

SIR का असली मकसद क्या?

एनजीओ के अनुसार, SIR का उद्देश्य था—

  • विदेशी और अवैध प्रवासियों के नाम वोटर लिस्ट से हटाना

लेकिन प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग के पास
न तो नागरिकता तय करने का संवैधानिक अधिकार है, न कानूनी और न ही न्यायिक।

उन्होंने बताया:

  • यदि किसी बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को नागरिकता पर संदेह हो
    → वह मामला सक्षम प्राधिकरण को भेज सकता है
  • अंतिम फैसला आने तक
    → व्यक्ति को सिर्फ शक के आधार पर वोटर लिस्ट से नहीं हटाया जा सकता
    → खासकर तब, जब वह शपथपत्र देकर खुद को भारतीय नागरिक बताए

कोर्ट में यह भी उठी बात

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट शोएब आलम ने कहा:

  • चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है
  • लेकिन आयोग कानूनी सीमा से आगे नहीं जा सकता
  • उसे वही करना चाहिए जो कानून में स्पष्ट रूप से लिखा है

क्यों बढ़ा विवाद?

बिहार की वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के आरोप पहले भी लगते रहे हैं।
लेकिन इस बार SIR के बाद भी लाखों डुप्लीकेट नामों का होना पूरे चुनावी ढांचे की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहा है।

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