
नई दिल्ली: देश के अलग-अलग राज्यों में चल रहे गहन मतदाता पुनरीक्षण (SIR) के दौरान कई बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) की आत्महत्याओं के मामले सामने आ चुके हैं। सवाल उठता है कि आखिर BLO अपने जीवन के साथ इतना जोखिम क्यों उठा रहे हैं?
तनाव और दबाव: BLO के सामने काम का बोझ असहनीय है। गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बंगाल, केरल, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश से कई मौतों की खबरें आई हैं। कम समय में भारी कार्य, समय पर काम पूरा न होने का डर, वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव और पोर्टल के तकनीकी दिक्कतें—इन सबने BLO के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाला है।
सिस्टम की कठोरता: कई BLO पर FIR दर्ज, कुछ को निलंबित किया गया और कुछ इस्तीफा देने को मजबूर हुए। सिस्टम की यह कठोरता उनके लिए अतिरिक्त मानसिक दबाव बन गई है।
अतिरिक्त जिम्मेदारी: BLO अपने नियमित कार्यों के साथ ही SIR के लिए भी जिम्मेदार हैं। हर BLO को लगभग 1,000 मतदाता का बूथ संभालना होता है। घर-घर संपर्क, नए डेटा की प्रविष्टि, मृतक मतदाताओं का सत्यापन, फॉर्म भरना और पोर्टल क्रैश होने पर दोबारा एंट्री करना—यह सब काम उन्हें रात-रात जागकर करना पड़ता है।
आर्थिक कमाई: BLO को इसके लिए वार्षिक अतिरिक्त भत्ता मिलता है। इस बार SIR अभियान के लिए विशेष भत्ता केवल 2,000 रुपये रखा गया है।
कानूनी और राजनीतिक दबाव: कई राज्यों में SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दायर की गई हैं। वहीं राजनीतिक मोर्चे पर यह प्रक्रिया विपक्ष और सत्ता दल के बीच घमासान का कारण बनी है। मतदाता सूची में संशोधन के पीछे नकली और असली वोटरों की पहचान, घुसपैठियों को सही दस्तावेज़ देना—सभी मुद्दे BLO पर सीधे दबाव डालते हैं।
समस्या का समाधान: विशेषज्ञ कहते हैं कि SIR जैसे अभियान में पारदर्शिता और सिस्टम की आसान प्रक्रिया BLO के तनाव को कम कर सकती है। इसके बिना, कार्यभार के बोझ तले BLO की मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और बढ़ेंगी।
निष्कर्ष: मतदाता सत्यापन ज़रूरी है, लेकिन इसे करने वाले बूथ स्तर के कर्मचारियों के लिए कार्यस्थल सुरक्षित, मानवतापूर्ण और सहयोगी होना चाहिए, ताकि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में योगदान देने वाले BLO जीवन और मानसिक स्वास्थ्य की कीमत न चुकाएं।