
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा की महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी में तीन महिला सफाई कर्मचारियों से पीरियड्स साबित करने के लिए सैनिटरी पैड की तस्वीरें भेजने वाली घटना पर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने इस घटना को पीरियड-शेमिंग की गंभीर समस्या बताते हुए पूरे भारत में लागू होने वाले दिशानिर्देश बनाने का आदेश दिया है।
कोर्ट की चिंता और निर्देश
- सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों और कार्यस्थलों पर महिलाओं को पीरियड्स के कारण शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है।
- कोर्ट ने केंद्र सरकार और संबंधित मंत्रालयों को नोटिस जारी कर निर्देशों की तत्काल आवश्यकता बताई है।
- सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने बताया कि यह घटना अकेली नहीं है, देशभर में कई महिलाओं और लड़कियों को ऐसे अपमानजनक अनुभवों का सामना करना पड़ा है।
अनुच्छेद 21 का उल्लंघन
SCBA ने याचिका में कहा कि महिलाओं और लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान आक्रामक और अपमानजनक जांचों से गुजरना पड़ता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन, गरिमा, गोपनीयता और शारीरिक अखंडता के अधिकार का उल्लंघन है।
हरियाणा सरकार की कार्रवाई
हरियाणा सरकार ने कोर्ट को बताया कि घटना की जांच शुरू कर दी गई है और जिम्मेदार दो लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
महत्व और भविष्य
कोर्ट का यह कदम सुनिश्चित करेगा कि कार्यस्थलों और शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान गरिमा और सम्मान मिले। यह निर्णय महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।