
पटना, 15 नवंबर 2025: बिहार चुनाव परिणाम ने एक बार फिर विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ के सामने कठिन सवाल खड़े कर दिए हैं। महागठबंधन को मिली करारी हार ने इस राजनीतिक गठबंधन की मजबूती पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या ‘INDIA’ ब्लॉक के विचार को नए सिरे से परिभाषित करने का समय आ चुका है?
बिहार चुनाव में हार का असर
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद विपक्षी दलों ने एकजुट होकर ‘INDIA’ ब्लॉक का गठन किया था, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की प्रमुख ताकत बनकर उभरा था। हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार ने गठबंधन के भीतर असहमति और विश्वास की कमी को उजागर कर दिया है।
महागठबंधन के प्रयास के बावजूद, कांग्रेस, वामपंथी दलों और अन्य जातिगत पार्टियों को साथ लाने में आरजेडी सफल नहीं हो पाई, और यही कारण रहा कि जेडीयू-बीजेपी गठबंधन के खिलाफ विपक्ष एक मजबूत चुनौती पेश नहीं कर पाया।
कांग्रेस को अब क्या करना होगा?
अब कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती यह है कि वह बिहार की हार के बाद अपने सहयोगियों के साथ संबंधों को कैसे बेहतर बनाए। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में हार के पीछे सहयोगियों के बीच विश्वास की कमी और रणनीतिक असहमति मुख्य कारण रही। कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीटों को लेकर खींचतान ने भी महागठबंधन को कमजोर किया।
2024 की लोकसभा चुनावों में इस गठबंधन को पटरी पर लाने के लिए कांग्रेस को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। कांग्रेस के लिए यह जरूरी होगा कि वह अपने सहयोगियों से सामंजस्य बनाकर आगे बढ़े और अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए त्याग के मोड में लौटे। कांग्रेस को यह तय करना होगा कि क्या वह अपनी प्राथमिकताओं को छोड़कर ‘INDIA’ गठबंधन के लिए पूरी तरह से समर्पित हो जाएगी।
बंगाल और तमिलनाडु में स्थिति
बिहार की हार का असर अब बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी दिखने वाला है, जहाँ आगामी चुनावों में ‘INDIA’ गठबंधन की स्थिति पर असर पड़ेगा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही स्पष्ट कर चुकी हैं कि कांग्रेस उनके लिए कोई अहम सहयोगी नहीं है। ममता ने 2024 में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने की योजना को भी दोहराया है, जिसके बाद कांग्रेस को इन राज्यों में अपनी स्थिति को लेकर गंभीर सोचने की जरूरत है।
तमिलनाडु में स्थिति थोड़ी बेहतर नजर आ रही है, क्योंकि यहाँ कांग्रेस और डीएमके के बीच मजबूत संबंध हैं। हालांकि, स्थानीय कांग्रेस नेता डीएमके के ‘बड़े भाई’ वाली मानसिकता से नाराज हैं, और उनकी यह नाराजगी गठबंधन की भविष्यवाणी को प्रभावित कर सकती है।
क्या ‘INDIA’ ब्लॉक में बदलाव की आवश्यकता है?
बिहार में महागठबंधन की हार ने यह साफ कर दिया है कि अगर ‘INDIA’ गठबंधन को राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी बनाना है, तो इसे अपने भीतर की असहमितियों और मतभेदों को हल करना होगा। अब यह कांग्रेस पर निर्भर करेगा कि वह कैसे अपने सहयोगियों के साथ तालमेल बनाए और चुनावी रणनीतियों में एकता लाए।
अगर कांग्रेस 2024 के चुनाव में भारत के विपक्षी राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाना चाहती है, तो उसे अपने सीनियर नेताओं द्वारा किए गए समर्पण और त्याग की नीति को अपनाना होगा, ताकि वह महागठबंधन के भीतर उत्पन्न हो रही असहमितियों को सुलझा सके।
आखिरकार, सवाल यही है कि क्या कांग्रेस इस बार अपने ‘त्याग के मोड’ में वापस लौटेगी और विपक्ष की एकता को मजबूत करने के लिए अपना अहम योगदान देगी?