
देश के भीतर रोज़गार की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए हालात लगातार असुरक्षित होते जा रहे हैं। केरल के पलक्कड़ जिले में छत्तीसगढ़ से आए 31 वर्षीय मजदूर राम नारायण बघेल की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या ने एक बार फिर प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह घटना 17 दिसंबर की है। स्थानीय भाषा न जानने के कारण राम नारायण बघेल को भीड़ ने चोर समझ लिया। अपनी बेगुनाही की गुहार लगाने के बावजूद, उन्हें पुलिस के हवाले करने के बजाय बेरहमी से पीटा गया, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। पुलिस ने इस मामले में अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया है।
बघेल के चचेरे भाई शशिकांत बघेल के मुताबिक, भाषा की बाधा और गलतफहमी ही इस हिंसा की सबसे बड़ी वजह बनी। उन्होंने बताया कि यदि समय रहते समझदारी दिखाई जाती, तो एक निर्दोष जान बच सकती थी।
यह घटना केरल जैसे सामाजिक रूप से प्रगतिशील माने जाने वाले राज्य में बाहरी लोगों के प्रति बढ़ते अविश्वास और नफरत को उजागर करती है। बीते तीन वर्षों में यह केरल में किसी प्रवासी मजदूर की तीसरी लिंचिंग की घटना है, जिसने राज्य और देश दोनों को झकझोर दिया है।
विशेषज्ञों की चेतावनी: बढ़ रहा है जेनोफोबिया
सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ केरल में जेनोफोबिया (अजनबियों के प्रति भय और द्वेष) के बढ़ते खतरे को लेकर आगाह कर रहे हैं। उनका कहना है कि उत्तर और पूर्वोत्तर भारत से बढ़ते आंतरिक प्रवास के साथ यह प्रवृत्ति बीते दो दशकों में तेज हुई है। भाषा, संस्कृति और पहचान का अंतर कई बार हिंसा का कारण बन रहा है।
केरल की अर्थव्यवस्था में प्रवासी मजदूरों की बड़ी हिस्सेदारी
केरल राज्य योजना बोर्ड की 2017-18 की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के कई जिलों में प्रवासी मजदूर कुल कार्यबल का बड़ा हिस्सा हैं।
कासरगोड – 34%
कन्नूर – 38%
त्रिशूर – 29%
एर्नाकुलम – 57%
पठानामथिट्टा – 61%
राज्य में आने वाले प्रवासी मजदूरों में सबसे अधिक संख्या पश्चिम बंगाल (41%) और असम (31%) से है, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और झारखंड से भी बड़ी संख्या में लोग रोज़गार की तलाश में केरल पहुंचते हैं।
तीन साल में तीन लिंचिंग की घटनाएं
अप्रैल 2023: अरुणाचल प्रदेश के अशोक दास (24) की एर्नाकुलम में पीट-पीटकर हत्या
मई 2024: बिहार के राजेश मांझी (37) की मलप्पुरम में चोरी के शक में हत्या
दिसंबर 2025: छत्तीसगढ़ के राम नारायण बघेल (31) की पलक्कड़ में लिंचिंग
इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि रोज़गार की तलाश में निकले मजदूर केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और जान के खतरे से भी जूझ रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, भाषा सहायता, सामाजिक जागरूकता और भीड़ हिंसा के खिलाफ सख्त कानून लागू किए बिना ऐसी घटनाओं पर रोक लगाना मुश्किल होगा।