
पटना: बिहार में शराबबंदी कानून के तहत जब्त वाहनों की नीलामी में भारी अनियमितताओं पर पटना हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद और न्यायमूर्ति सौरेंद्र पांडेय की खंडपीठ ने मुजफ्फरपुर से जुड़े एक मामले में सुनवाई के दौरान नीलामी प्रक्रिया को नियमों का खुला उल्लंघन बताया और इसे “सिस्टम की सांठगांठ” का गंभीर संकेत करार दिया।
कौड़ियों के भाव बिक गई 12 लाख की स्कॉर्पियो
मामला वर्ष 2020 में जब्त की गई मुजफ्फरपुर जिले की एक स्कॉर्पियो (S-9 मॉडल) से जुड़ा है। जांच में सामने आया कि वाहन का बीमित मूल्य 12.12 लाख रुपये था, लेकिन उसे मात्र 3.85 लाख रुपये में नीलाम कर दिया गया। हाईकोर्ट ने पाया कि नीलामी से पहले वाहन मालिक को न तो कोई कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और न ही उसे अपना पक्ष रखने का अवसर मिला। हैरानी की बात यह भी रही कि अधिकारियों ने एक ही आदेश के तहत 490 वाहनों को जब्त कर थोक में नीलामी कर दी।
विज्ञापन और मूल्यांकन में गंभीर गड़बड़ी
कोर्ट ने नीलामी की पारदर्शिता पर तीखे सवाल उठाते हुए कहा कि नियमों के अनुसार अखबारों में विज्ञापन तक नहीं दिया गया। साथ ही यह तथ्य भी सामने आया कि कुछ चुनिंदा लोग बार-बार कई वाहन खरीद रहे थे, जिससे अधिकारियों और खरीदारों के बीच गहरी मिलीभगत की आशंका मजबूत होती है। महंगी गाड़ियों का मूल्यांकन बाजार कीमत से बेहद कम आंकना भी प्रक्रिया को संदिग्ध बनाता है।
दोषी अफसरों से होगी पूरी वसूली
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वाहन मालिक को 12,12,517 रुपये की राशि 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ लौटाई जाए। इसके अलावा मुकदमे के खर्च के तौर पर 10,000 रुपये अलग से देने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने साफ किया कि यह पूरी राशि उन दोषी अधिकारियों से वसूल की जाए जिन्होंने नियमों का उल्लंघन किया। साथ ही आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) को दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर विस्तृत जांच करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
यह फैसला न सिर्फ पीड़ित वाहन मालिक के लिए बड़ी राहत है, बल्कि जब्त वाहनों की नीलामी में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम मिसाल भी माना जा रहा है।