
अरावली हिल्स को लेकर सियासी घमासान जारी है। मंगलवार को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए पूछा कि मोदी सरकार अरावली पर्वतमाला को फिर से परिभाषित करने के लिए इतनी आमादा क्यों है। जयराम रमेश ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव के हालिया स्पष्टीकरण को भी सवालों के घेरे में रखा।
भूपेंद्र यादव ने सोमवार को कहा था कि अरावली के कुल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से केवल 0.19 प्रतिशत भूमि वर्तमान में खनन पट्टों के अंतर्गत आती है। उन्होंने दावा किया कि सरकार अरावली की सुरक्षा और पुनर्स्थापन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
कांग्रेस ने उठाए ये मुद्दे
जयराम रमेश ने कहा कि मंत्री द्वारा प्रस्तुत आंकड़े भ्रामक हैं। उन्होंने बताया कि 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर में चार राज्यों के 34 जिलों का पूरा भौगोलिक क्षेत्र शामिल किया गया, जबकि वास्तविक अरावली पर्वत शृंखला इससे कहीं कम है। सही आंकड़ों के अनुसार केवल 15 जिलों में अरावली क्षेत्र कुल भूमि का लगभग 33 प्रतिशत है।
रमेश ने चेतावनी दी कि यदि संशोधित परिभाषा लागू होती है, तो 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली कई पहाड़ियां संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी, जिससे दिल्ली-एनसीआर में रियल एस्टेट विकास के लिए अधिक क्षेत्र खुलेगा और पर्यावरणीय दबाव बढ़ेगा।
पारिस्थितिकी के महत्व की अनदेखी
कांग्रेस नेता ने कहा कि केंद्रीय मंत्री खनन के लिए सरिस्का टाइगर रिजर्व की सीमाओं को भी फिर से परिभाषित करने की पहल कर रहे हैं, जबकि इससे जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र का गंभीर विखंडन हो सकता है। जयराम रमेश ने जोर देकर कहा कि अरावली हमारी प्राकृतिक विरासत का अहम हिस्सा हैं, जिनके संरक्षण और पुनर्स्थापन की तत्काल आवश्यकता है।
उन्होंने सवाल उठाया: “मोदी सरकार अरावली को फिर से परिभाषित करने पर क्यों आमादा है? किसके हित में? और भारतीय वन सर्वेक्षण जैसी पेशेवर संस्थाओं की सिफारिशों को जानबूझकर क्यों नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?”