Tuesday, December 23

मुगलों का ‘इंटेलिजेंस एम्पायर’: जासूसों के दम पर चलता था साम्राज्य, हिंदू राजा भी रहते थे चौकन्ने

 

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आशीष दीप, पटना: मुगलकालीन बादशाहों ने सिर्फ अपनी सेना और सत्ता से ही नहीं, बल्कि एक सटीक और चतुर खुफिया जाल के दम पर भारत पर राज किया। यह नेटवर्क इतना प्रभावशाली था कि राजस्थान के रजवाड़ों में होने वाली हर हलचल की जानकारी तत्काल बादशाह तक पहुंचती थी।

 

पांच परतों में बंटी मुगल जासूसी

 

मुगल खुफिया तंत्र कई परतों में बंटा हुआ था, जहां हर एजेंट का काम अलग और अत्यंत महत्वपूर्ण था।

 

  1. वाकाई-नवीस (The Waqai Nawis) – खुले तौर पर काम करने वाले सरकारी रिपोर्टर, जो प्रशासनिक फैसलों और स्थानीय हालात की जानकारी बादशाह तक पहुंचाते थे। अकबर ने अपने दरबार में ऐसे 14 वाकाई-नवीस रखे थे।

 

  1. सवानिह-नवीस (Swanih Nawis) – वाकाई-नवीस की रिपोर्टों की सत्यता जांचने वाले गुप्त एजेंट। शाहजहां ने इस पद की स्थापना की थी। इनके साथ घुड़सवार रहते थे और ये सीधे बादशाह को रिपोर्ट करते थे।

 

  1. खुफिया-नवीस – सबसे खतरनाक अंडरकवर जासूस। आम जनता में व्यापारी, साधु या फकीर बनकर रहते और अधिकारियों की निजी बातें इकट्ठा करते थे। औरंगजेब ने इन्हें विशेष तैनाती दी थी।

 

  1. हरकारा – संदेशवाहक नहीं बल्कि सूचना का प्रमुख माध्यम। रास्तों की स्थिति, सेना की हलचल और अफवाहें सीधे बादशाह तक पहुंचाते थे।

 

  1. जासूस – अंडरग्राउंड रिपोर्टर, जिन्हें अलाउद्दीन खिलजी के समय मुनिहयान कहा जाता था। सत्ता विरोधी गतिविधियों की जानकारी देना इनका मुख्य काम था।

 

डाक-चौकी: जासूसी का रीढ़

 

शेरशाह सूरी ने डाक-चौकी प्रणाली की नींव रखी और अकबर ने इसे और मजबूत किया। हर 10–15 किलोमीटर पर घोड़े और धावक तैयार रहते थे, जो सूचना राजधानी तक रातों-रात पहुंचा देते थे। दुर्गम इलाकों में मेवरा धावक अपनी रफ्तार और गोपनीयता के लिए मशहूर थे।

 

युद्ध में जासूसों की भूमिका

 

रजवाड़ों और मुगल सेनाओं के बीच युद्ध के समय जासूस सक्रिय हो जाते थे। टोही दस्ते दुश्मन के शिविरों में घुसकर रसद और रणनीति की जानकारी जुटाते थे। औरंगजेब के समय जासूस अफवाहें फैलाकर दुश्मन में डर पैदा करते थे, जिससे कई बार बिना युद्ध के ही जीत सुनिश्चित होती थी।

 

चेक एंड बैलेंस सिस्टम

 

मुगल साम्राज्य में किसी भी अफसर को यह नहीं पता होता था कि उस पर कौन नजर रख रहा है। यही गुप्त निगरानी तंत्र मुगलों को इतना लंबे समय तक साम्राज्य चलाने में सक्षम बनाता था।

 

निष्कर्ष: मुगलों की यह खुफिया प्रणाली केवल जासूसों का नेटवर्क नहीं, बल्कि एक पूर्ण प्रशासनिक और रणनीतिक तंत्र था, जिसने भारत में सत्ता की स्थायित्व और नियंत्रण की कुंजी बनाई।

 

 

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