
चीन और भारत कभी एक ही पिच पर थे, लेकिन 1990 के बाद चीन ने जिस रफ्तार से विकास किया, उसकी दुनिया में कोई तुलना नहीं। आज चीन की अर्थव्यवस्था भारत से लगभग चार गुना बड़ी है और प्रति व्यक्ति आय भी कई गुना अधिक है। चीन अब दुनिया के 80 देशों का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन चुका है।
चीन का चौंकाने वाला ट्रेड सरप्लस
2025 में चीन का ट्रेड सरप्लस पहली बार 1 ट्रिलियन डॉलर के पार पहुंच गया। इस साल के पहले 11 महीनों में चीन ने 3.4 ट्रिलियन डॉलर का निर्यात किया जबकि आयात सिर्फ 2.3 ट्रिलियन डॉलर रहा। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारी टैरिफ लगाए, लेकिन चीन ने अमेरिका पर निर्भरता कम कर दूसरे बाजारों में निर्यात बढ़ाकर अपना दबदबा बनाए रखा।
ऑटो और हाई-टेक में दबदबा
चीन की ऑटो कंपनियों ने इलेक्ट्रिक वाहनों में पूरी दुनिया में प्रभुत्व स्थापित किया। जर्मनी और जापान के बाजारों पर उसने कब्जा कर लिया। इसके अलावा, सेमीकंडक्टर और हाई-टेक सामान के निर्यात में 24.7% की वृद्धि हुई।
वैश्विक रणनीति और मुद्रा का खेल
चीन ने अमेरिका के टैरिफ से बचने के लिए कई प्लांट दक्षिण-पूर्व एशिया, मेक्सिको और अफ्रीका में स्थानांतरित किए। इसके अलावा, उसने अपने सामान को तीसरे देशों के जरिए अमेरिका भेजकर निर्यात जारी रखा। कमजोर रेनमिंबी और मुद्रा स्थिरता ने निर्यातकों को प्रतिस्पर्धा में बढ़त दी।
रेयर अर्थ और वैश्विक प्रभुत्व
चीन दुनिया के रेयर अर्थ संसाधनों का 60–70% खनन करता है। इन धातुओं का इस्तेमाल स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और लड़ाकू विमान निर्माण में होता है।
भारत के लिए सबक
चीन ने निर्यात और औद्योगिक नीतियों के बल पर वैश्विक बाजार में दबदबा स्थापित किया। भारत को अपनी स्वदेशी नीतियों के बावजूद चीन के निर्यात मॉडल से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। चीन की तरह ही निर्यात क्षेत्र और उच्च-मूल्य वाले उत्पादों पर जोर देकर भारत आर्थिक मजबूती और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त हासिल कर सकता है।
निष्कर्ष:
टैरिफ और नीतिगत बाधाओं के बावजूद चीन ने निर्यात बढ़ाकर वैश्विक बाजार में अपना दबदबा बनाया। भारत के लिए यह एक स्पष्ट संदेश है कि औद्योगिक और निर्यात नीति में दीर्घकालिक रणनीति और बाजार विविधीकरण कितना अहम है।