Thursday, December 11

भयंकर बवाल के बीच EVM का इतिहास सामने आया, अमित शाह ने कांग्रेस को घेरा

नई दिल्ली: चुनाव सुधार प्रक्रिया को लेकर बुधवार को संसद में भारी बवाल हुआ। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर EVM की दलील गले नहीं उतरती, तो अब ‘वोट चोरी’ का मुद्दा लेकर आएं। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरे बिहार में विपक्ष ने यह मुद्दा उठाया, लेकिन हार का कारण आपका नेतृत्व है, मतदाता सूची या EVM नहीं।

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कांग्रेस का इतिहास आया सामने:
अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में पूरी मतपेटियां हाइजैक हो जाती थीं। ईवीएम के आने से यह प्रक्रिया बंद हुई और चुनाव की पारदर्शिता बढ़ी। उन्होंने 1952 से लेकर 2004 तक हुए एसआईआर (Systematic Induction of Reforms) का इतिहास गिनाते हुए बताया कि पहले कई बार देश में चुनाव सुधार किए गए, जिनमें कांग्रेस के समय में मतपेटियों से जुड़े गंभीर मुद्दे सामने आए।

EVM का सफर:

  • 1977: चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के प्रयोग पर विचार शुरू किया।
  • 1982: केरल के पारूर विधानसभा उपचुनाव में EVM का पहला वास्तविक प्रयोग हुआ।
  • 1989: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन, जिससे EVM को कानूनी मान्यता मिली।
  • 1998-2000: कई राज्यों में बड़े पैमाने पर EVM का ट्रायल।
  • 2004: पूरे देश में 100% मतदान EVM से कराया गया।
  • 2013: VVPAT तकनीक जोड़ी गई, जो 2019 से पूरे देश में लागू।

EVM की विश्वसनीयता:
अमित शाह ने स्पष्ट किया कि भारतीय EVM पूरी तरह स्टैंडअलोन मशीनें हैं। इनमें इंटरनेट या किसी भी वायरलेस तकनीक का कोई घटक नहीं होता। इन्हें केवल ECIL और BEL जैसी सरकारी कंपनियां ही बनाती हैं। यह मशीनें पारंपरिक बैलेट पेपर की तुलना में अधिक तेज, सुरक्षित और भरोसेमंद हैं।

राहुल गांधी की प्रतिक्रिया:
विपक्षी नेता राहुल गांधी ने कहा कि अमित शाह चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान बचाव की मुद्रा में नजर आए। उन्होंने आरोप लगाया कि EVM और वोटिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग करने पर भी गृह मंत्री ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया।

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