
भुवनेश्वर। ओडिशा की राजनीति में तेजी से बदलते समीकरणों के बीच बीजू जनता दल (बीजेडी) अब सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। 24 साल के लंबे शासन के बाद सत्ता से बाहर होना ही पार्टी के लिए बड़ा झटका था, अब जिला और पंचायत स्तर पर नेताओं के भाजपा में शामिल होने की लहर ने स्थिति और गंभीर बना दी है।
बीजेडी नेताओं का आरोप है कि भाजपा राज्य में ‘ऑपरेशन लोटस’ चला रही है और पंचायत चुनाव से पूर्व दबाव की राजनीति के जरिए बीजेडी को कमजोर करने की रणनीति अपनाई जा रही है। हालांकि भाजपा इन आरोपों को सिरे से खारिज कर रही है।
नौपदा उपचुनाव में हार ने बढ़ाई दिक्कतें
बीजेडी के लिए सबसे बड़ा झटका हाल ही में हुए नौपदा उपचुनाव के नतीजे रहे, जहां पार्टी तीसरे स्थान पर खिसक गई। विशेष बात यह कि खराब स्वास्थ्य के बावजूद नवीन पटनायक स्वयं दो बार चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे, फिर भी पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
इस सीट पर बीजेडी का वोट प्रतिशत 33% से गिरकर 18.07% रह गया, जबकि कांग्रेस दूसरे स्थान पर आ गई। 2024 विधानसभा चुनाव के बाद भी बीजेडी की ताकत घटकर जहां 50 विधायक रह गई, वहीं भाजपा 79 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
जिला और स्थानीय स्तर पर बढ़ रही भगदड़
बीजेडी के संकट को और गहरा करने वाली दो ताजा घटनाएं भद्रक और तालचेर में देखने को मिलीं।
- भद्रक में बीजेडी के कई स्थानीय नेता भाजपा में शामिल हो गए।
- तालचेर नगरपालिका के कई निर्वाचित प्रतिनिधियों ने भी भाजपा का दामन थाम लिया।
ये दोनों क्षेत्र भाजपा नेताओं मनमोहन सामल और धर्मेंद्र प्रधान का राजनीतिक गढ़ हैं, इसलिए इसमें भाजपा की रणनीतिक सक्रियता साफ दिखाई देती है।
उत्तराधिकारी की कमी बनी बीजेडी की कमजोर कड़ी
बीजेडी में अंदरखाने यह चर्चा तेज है कि क्या 79 वर्षीय नवीन पटनायक के नेतृत्व पर अनंतकाल तक निर्भर रहना पार्टी के लिए ठीक रहेगा।
नवीन पटनायक लंबे समय से स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय राजनीति से कुछ दूरी बनाए हुए हैं, लेकिन उन्होंने आज तक किसी स्पष्ट उत्तराधिकारी का ऐलान नहीं किया।
कभी उन्होंने प्यारीमोहन मोहपात्रा और बाद में वी.के. पांडियन को पार्टी में अहम जिम्मेदारियां दीं, मगर नेतृत्व परिवर्तन पर अंतिम फैसला टला रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि विपक्ष में बैठने के बाद बीजेडी न तो सरकार पर दबाव बना पा रही है और न ही संगठन को मजबूत कर पा रही है।
2027 पंचायत चुनाव: बीजेडी की अग्निपरीक्षा
ओडिशा में 2027 के पंचायत चुनाव बीजेडी के भविष्य का रास्ता तय करेंगे।
2022 में पार्टी ने जिला परिषद की 852 में से 766 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि भाजपा 42 और कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई थी।
लेकिन मौजूदा हालात बताते हैं कि अगर बीजेडी ने अगले एक साल में
- मजबूत नेतृत्व तैयार नहीं किया,
- कार्यकर्ताओं से संवाद बहाल नहीं किया,
- और ‘ऑपरेशन लोटस’ जैसी चुनौतियों का जवाब नहीं दिया,
तो पंचायत चुनाव में पिछड़ना 2029 में सत्ता वापसी को बेहद कठिन बना देगा।
क्या बीजेडी नए नेतृत्व के साथ वापसी कर पाएगी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेडी की सबसे बड़ी ताकत हमेशा नवीन पटनायक का व्यक्तित्व रहा है। लेकिन बदलते समय में पार्टी को एक सक्रिय, संवादशील और संगठन मजबूत करने वाला चेहरा चाहिए, जो कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा सके और भाजपा के बढ़ते दबाव का मुकाबला कर सके।
अब नजर इस पर टिकी है कि क्या नवीन पटनायक नेतृत्व परिवर्तन की दिशा में कोई बड़ा निर्णय लेंगे या बीजेडी मौजूदा परिस्थितियों में खुद को संभालकर दोबारा ओडिशा की राजनीति में मजबूती से उभरेगी।
