
अमेरिका के स्कूलों में बढ़ती गोलीबारी की घटनाओं के बीच अब बच्चों की सुरक्षा के नाम पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित निगरानी व्यवस्था लागू की जा रही है। लेकिन यह तकनीक सुरक्षा के साथ-साथ निजता पर गंभीर सवाल भी खड़े कर रही है।
अमेरिका के कई स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अत्याधुनिक एआई सिस्टम लगाए गए हैं। इनमें चेहरा पहचानने वाले कैमरे, हथियार पहचानने वाले सेंसर, ड्रोन निगरानी और यहां तक कि वॉशरूम में लगाए गए ऐसे डिवाइस भी शामिल हैं जो आवाज सुन सकते हैं। इनका दावा है कि अगर कोई बच्चा मदद के लिए चिल्लाए या कोई संदिग्ध गतिविधि हो, तो तुरंत अलर्ट मिल जाए।
वॉशरूम तक पहुंची निगरानी
फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार, कैलिफोर्निया के बेवर्ली हिल्स हाई स्कूल जैसे संस्थानों में यह सिस्टम बेहद उन्नत है। यहां एआई कैमरे चेहरों को डेटाबेस से मिलाते हैं, वीडियो फुटेज से हिंसा के संकेत पहचानते हैं और पार्किंग में वाहनों की नंबर प्लेट तक स्कैन की जाती है। वॉशरूम में लगे डिवाइस धुआं, वेपिंग और आवाजों को पकड़ सकते हैं। स्कूल प्रशासन का कहना है कि बढ़ते खतरे के कारण यह सब जरूरी हो गया है।
गलत अलर्ट और डर का माहौल
हालांकि यह तकनीक हमेशा सटीक नहीं होती। कई बार लैपटॉप, पानी की बोतल या चिप्स का पैकेट तक को बंदूक समझ लिया गया। ऐसे गलत अलर्ट के कारण पुलिस बुलानी पड़ी, स्कूल बंद हुए और बच्चों में डर फैल गया। कुछ कंपनियों पर गलत दावे करने के आरोप में कार्रवाई भी हो चुकी है।
निजता पर गंभीर सवाल
अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) सहित कई संगठनों ने इस निगरानी पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि लगातार निगरानी से बच्चों में यह भावना पैदा होती है कि वे हर वक्त देखे जा रहे हैं। इससे वे अपनी मानसिक परेशानी, पारिवारिक समस्याएं या भावनात्मक बातें शिक्षकों से साझा करने से कतराने लगते हैं। कई शिक्षक भी मानते हैं कि लाइब्रेरी और वॉशरूम जैसी जगहों पर कैमरे नहीं होने चाहिए।
फायदे भी, लेकिन बहस जारी
स्कूल प्रशासन का तर्क है कि इन प्रणालियों से गुम हुए बच्चों को ढूंढना आसान हुआ है, वेपिंग और धूम्रपान पर रोक लगी है और कुछ स्कूलों में सुरक्षा का एहसास बढ़ा है। कुछ छात्र भी खुद को पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
क्यों बढ़ी एआई निगरानी की जरूरत?
अमेरिका में स्कूलों में गोलीबारी की घटनाएं लगातार चिंता का विषय बनी हुई हैं। ‘एवरीटाउन फॉर गन सेफ्टी’ जैसे संगठनों के आंकड़े बताते हैं कि हर साल कई मासूम जानें जाती हैं। इसी डर के चलते स्कूल प्रशासन एआई तकनीक को एक समाधान के रूप में देख रहा है।
निष्कर्ष
सवाल यह है कि क्या बच्चों की सुरक्षा के नाम पर उनकी निजता की कीमत चुकाई जानी चाहिए? एआई आधारित निगरानी जहां एक ओर संभावित खतरों को पहले पहचानने का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर यह बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास और निजी स्वतंत्रता पर गहरा असर डाल सकती है। सुरक्षा और निजता के बीच संतुलन बनाना अब अमेरिकी शिक्षा व्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।