
नई दिल्ली: बिहार चुनाव के बीच सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवारों के नामांकन पत्र में आपराधिक पृष्ठभूमि या सजा की जानकारी छिपाने को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि कोई उम्मीदवार अपनी पिछली दोषसिद्धि का खुलासा नहीं करता, तो उसकी उम्मीदवारी रद्द की जा सकती है। ऐसा करना मतदाता के मताधिकार में बाधा माना जाएगा।
मामला क्या था?
मध्य प्रदेश के भीकनगांव नगर परिषद की पूर्व पार्षद पूनम को उनके नामांकन पत्र में चेक बाउंस मामले की दोषसिद्धि का खुलासा नहीं करने पर पद से हटा दिया गया था। बाद में हाई कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि रद्द कर दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह तथ्य किसी भी तरह से नामांकन पत्र में जानकारी छिपाने के दोष को कम नहीं करता।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की पीठ ने याचिकाकर्ता की अपील खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि उम्मीदवार की दोषसिद्धि की जानकारी छिपाना मतदाता को सूचित निर्णय लेने के अधिकार से वंचित करता है।
कोर्ट ने कहा:
- चाहे अपराध मामूली हो या गंभीर, जानकारी छिपाना मतदाता के स्वतंत्र चुनाव अधिकार में बाधा है।
- 1881 के चेक बाउंस अधिनियम की धारा 138 के तहत दोषसिद्धि का खुलासा न करना नियमों का उल्लंघन है।
- 1994 के मध्य प्रदेश नगर पालिका निर्वाचन नियम के नियम 24-ए (1) का पालन अनिवार्य है।
नतीजा
सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि चुनाव में पारदर्शिता और जानकारी का खुलासा अनिवार्य है। अब उम्मीदवारों को नामांकन के समय अपनी सभी दोषसिद्धियों की जानकारी देना होगी, चाहे अपराध मामूली ही क्यों न हो।