
गाजियाबाद। भाजपा महिला पार्षद शीतल चौधरी द्वारा कथित फायरिंग हमले का मामला अब पलट गया है। जिस वारदात को उन्होंने जानलेवा हमला बताया था, पुलिस की जांच ने उसे संदिग्ध ही नहीं बल्कि फर्जी करार देने की दिशा में बड़ा मोड़ दे दिया है। फोरेंसिक रिपोर्ट और सीसीटीवी जांच में एक भी ऐसा सबूत नहीं मिला, जो उनके दावों की पुष्टि कर सके। इसके उलट जांच में कई ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जो पूरे घटनाक्रम पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहे हैं।
29 अक्टूबर की रात पार्षद शीतल चौधरी ने दावा किया था कि एनडीआरएफ रोड पर बाइक सवार दो हमलावरों ने उनकी कार पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं, जिससे गाड़ी का शीशा टूट गया और वह बाल-बाल बच गईं। घटना की सूचना मिलते ही भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में हड़कंप मच गया। महानगर अध्यक्ष मयंक गोयल से लेकर कई विधायक थाने पहुंच गए और पुलिस पर तत्काल कार्रवाई का दबाव बनाया।
कमिश्नर जे. रविंदर गौड़ ने विशेष टीम गठित कर जांच शुरू कराई, लेकिन परिणाम चौंकाने वाले रहे। फोरेंसिक टीम ने स्पष्ट किया कि कार पर गोली चलने का कोई प्रमाण नहीं है। गाड़ी की बॉडी, छत और शीशे पर न तो गन पाउडर मिला और न ही विस्फोटक कण। तीन सौ से अधिक सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए, लेकिन कथित हमलावरों का कोई निशान नहीं मिला।
सबसे बड़ा खुलासा टूटे शीशे की दिशा को लेकर हुआ। फोरेंसिक विशेषज्ञों के अनुसार कार का कांच बाहर की ओर बिखरा मिला, जबकि गोली बाहर से चलने पर शीशा अंदर की तरफ गिरता। यह तकनीकी तथ्य पूरी कहानी को संदिग्ध साबित करता है।
डीपी सिटी धवल जायसवाल ने पुष्टि की कि तकनीकी और वैज्ञानिक जांच में फायरिंग के प्रमाण नहीं मिले हैं। अब पुलिस अन्य पहलुओं पर जांच आगे बढ़ा रही है और जल्द ही पार्षद से पूछताछ की तैयारी कर रही है।
सूत्रों के अनुसार, शीतल चौधरी लंबे समय से पुलिस गनर की मांग कर रही थीं। साथ ही निगम के ठेकों को लेकर एक बड़े ठेकेदार से उनका विवाद भी चल रहा है। आशंका जताई जा रही है कि सुरक्षा प्राप्त करने और दबाव बनाने के लिए यह पूरा घटनाक्रम रचा गया हो।
भाजपा नेताओं के दबाव में शुरू हुई जांच अब खुद पार्टी की पार्षद को कटघरे में खड़ा कर रही है। आने वाले दिनों में इस मामले में कई और खुलासे होने की संभावना जताई जा रही है।